चीन ने अपनी ऑटोमोबाइल कंपनियों को कड़ी सलाह दी है कि वे उन्नत इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) तकनीक को देश में ही सुरक्षित रखें, भले ही वे दुनिया भर में फैक्ट्रियां खोल रहे हों, ताकि चीनी निर्यात पर लगाए गए भारी टैरिफ से बच सकें। इस मामले से जुड़े लोगों के अनुसार, यह निर्देश तब आया है जब चीनी कंपनियां स्पेन से लेकर थाईलैंड और हंगरी तक में फैक्ट्रियां स्थापित करने की योजना बना रही हैं, जहां उनके किफायती और उन्नत ईवी वाहन विदेशी बाजारों में अपनी जगह बना रहे हैं।
बीजिंग चीनी ऑटोमोबाइल निर्माताओं को प्रोत्साहित कर रहा है कि वे अपने विदेशी संयंत्रों में ‘नॉक-डाउन किट्स’ निर्यात करें, जिसका मतलब है कि वाहन के प्रमुख पुर्जे देश में ही निर्मित किए जाएंगे और अंतिम असेंबली उनके लक्ष्य बाजार में की जाएगी।
इस कदम के साथ, चीन की वाणिज्य मंत्रालय ने जुलाई में एक बैठक आयोजित की थी जिसमें दर्जनों से अधिक ऑटोमोबाइल कंपनियों ने भाग लिया। उन्हें यह भी कहा गया कि वे भारत में किसी प्रकार का ऑटो संबंधी निवेश न करें। इस निर्देश का उद्देश्य चीन की ईवी तकनीक को सुरक्षित रखना और रेगुलेटरी जोखिमों को कम करना है। इसके अलावा, अगर कोई कंपनी तुर्की में निवेश करना चाहती है, तो उसे पहले उद्योग और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय और तुर्की में चीनी दूतावास को सूचित करना होगा।
इस बैठक के दौरान मंत्रालय ने यह भी बताया कि जो देश चीनी ऑटोमोबाइल निर्माताओं को फैक्ट्री लगाने के लिए आमंत्रित कर रहे हैं, वही देश चीनी वाहनों पर व्यापारिक प्रतिबंध या टैरिफ लगाने की सोच रहे हैं। अधिकारियों ने कहा कि निर्माताओं को ऐसे निवेश आह्वानों का आँख मूंदकर पालन नहीं करना चाहिए।
स्पष्ट है कि चीन की यह रणनीति उन यूरोपीय देशों के लिए झटका साबित हो सकती है, जो चीनी कार निर्माताओं को अपने यहां आमंत्रित कर रोजगार और आर्थिक प्रगति की उम्मीद कर रहे थे। उदाहरण के लिए, बीवाईडी (BYD) तुर्की में 150,000 कारों की वार्षिक क्षमता वाली फैक्ट्री बनाने की योजना बना रही है, जिससे 5,000 लोगों को रोजगार मिलने की संभावना है। तुर्की ने जून में चीन से वाहन आयात पर 40% का टैरिफ लगाया था, जबकि बीवाईडी ने तुर्की में $1 बिलियन की लागत से फैक्ट्री बनाने के लिए सहमति जताई है।
चीन के इस निर्देश का यह मतलब भी है कि, जहाँ एक ओर उसके ईवी निर्माताओं को घरेलू बाजार में तीव्र प्रतिस्पर्धा और सुस्त बिक्री के कारण नुकसान हो रहा है, वहीं दूसरी ओर, वैश्विक स्तर पर विस्तार की उनकी कोशिशों को भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा।
और यहाँ सवाल उठता है कि क्या चीन अपने आक्रामक व्यापारिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से वास्तव में लाभ उठा पाएगा? या फिर उसकी यह रणनीति अपने ही पाँव पर कुल्हाड़ी मारने जैसा साबित होगी, जहाँ वह विदेशी निवेश के अवसर खोते हुए वैश्विक बाजार में अपनी स्थिति कमजोर कर सकता है। क्या चीनी सरकार इस प्रकार की नीतियों से अपने ही ऑटोमोबाइल निर्माताओं को वैश्विक अवसरों से वंचित कर रही है?
भारत और चीन के बीच तनाव भी इस फैसले का एक प्रमुख कारण है। 2020 में हिमालय क्षेत्र में हुए एक घातक संघर्ष के बाद से दोनों देशों के संबंध तनावपूर्ण बने हुए हैं। इस बीच, चीन की सरकारी ऑटो निर्माता कंपनी SAIC मोटर कॉर्प, जो भारत में MG मोटर का संचालन करती थी, पर 2022 में वित्तीय अनियमितताओं के आरोपों की जांच की गई थी। पिछले साल, SAIC ने भारतीय MG ऑपरेशन में अपनी हिस्सेदारी कम कर दी थी, और स्थानीय मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, आने वाले समय में यह हिस्सेदारी 38-40% तक सीमित हो सकती है।