वस्तु और सेवा कर (GST) परिषद 9 सितंबर को होने वाली अपनी आगामी बैठक में पेमेंट एग्रीगेटर्स (PAs) पर 2,000 रुपये तक के छोटे डिजिटल लेनदेन पर 18 प्रतिशत GST लगाने का प्रस्ताव ला सकती है। पेमेंट एग्रीगेटर एक तृतीय-पक्ष सेवा प्रदाता होता है जो ग्राहकों को ऑनलाइन भुगतान करने और व्यवसायों को उन्हें स्वीकार करने की सुविधा देता है।
राजस्व अधिकारियों की केंद्र और राज्यों की फिटमेंट कमेटी इस टैक्स दर पर विचार कर रही है। यह समिति मानती है कि पेमेंट एग्रीगेटर कार्ड लेनदेन के लिए एक मध्यस्थ के रूप में कार्य करते हैं और क्योंकि वे बैंक नहीं हैं, उन पर GST लगाना उचित होगा। इस प्रस्ताव पर अंतिम निर्णय GST परिषद द्वारा किया जाएगा, जिसकी अध्यक्षता केंद्रीय वित्त मंत्री करेंगे और यह निर्णय परिषद की 54वीं बैठक में अगले सप्ताह लिया जाएगा।
“अगर यह टैक्स लगाया जाता है, तो इससे छोटे व्यापारियों को नुकसान होगा, जिनके लेनदेन सामान्यतः कम मूल्य के होते हैं।… पेमेंट गेटवे इस टैक्स का बोझ सीधे व्यापारियों और व्यवसायों पर डाल देंगे,” एक उच्च पदस्थ वित्तीय अधिकारी ने CNBC को बताया।
फिलहाल, पेमेंट एग्रीगेटर्स प्रत्येक लेनदेन पर 0.5 प्रतिशत से 2 प्रतिशत तक की फीस लेते हैं। यदि उन पर GST लगाया गया, तो इसके परिणामस्वरूप यह टैक्स बोझ व्यापारियों पर स्थानांतरित किया जाएगा।
वर्तमान में, 2,000 रुपये से कम के लेनदेन पर पेमेंट एग्रीगेटर्स GST से मुक्त हैं। ये पेमेंट एग्रीगेटर डिजिटल भुगतानों जैसे QR स्कैनिंग, पॉइंट ऑफ सेल (POS) मशीन और नेट बैंकिंग का ध्यान रखते हैं।
गौरतलब है कि इससे पहले, 2016 में जब सरकार ने 500 और 1,000 रुपये के नोटों का विमुद्रीकरण किया था, तब 2,000 रुपये से कम के कार्ड भुगतान पर सेवा कर को हटा दिया गया था ताकि डिजिटल वित्तीय लेनदेन को बढ़ावा दिया जा सके और नकदी रहित अर्थव्यवस्था की ओर धीरे-धीरे कदम बढ़ाए जा सकें।
अब सवाल यह उठता है कि सरकार का डिजिटल भुगतान को प्रोत्साहित करने का इरादा क्या सिर्फ भाषणों तक सीमित था? जब नोटबंदी के बाद डिजिटल ट्रांजेक्शन को बढ़ावा देने के लिए टैक्स में छूट दी गई थी, तो अब अचानक यह नया बोझ क्यों? क्या यह छोटे व्यापारियों और डिजिटल इंडिया के नारे को आगे बढ़ाने का सही तरीका है, या बस उन्हें मुसीबत में डालने की एक और साजिश? ज़ाहिर है, जब सारे बोझ को व्यापारी और छोटे व्यवसायी ढो रहे हैं, तो डिजिटल भारत की सच्चाई कहीं छिपती नहीं दिखाई दे रही।