भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने 10 दिसंबर को अनलिस्टेड शेयरों की बिक्री के संबंध में स्पष्टीकरण जारी किया। इसमें उन प्लेटफॉर्म्स द्वारा अनलिस्टेड शेयरों को रिटेल निवेशकों को बेचे जाने के मुद्दे पर ध्यान केंद्रित किया गया है, जिससे भारत के तेजी से बढ़ते अनलिस्टेड शेयर बाजार और उससे जुड़े नियामकीय जोखिमों की चर्चा बढ़ गई है।
सेबी ने अनलिस्टेड शेयरों पर क्या कहा?
सेबी ने स्पष्ट किया है कि कुछ प्लेटफॉर्म्स अनलिस्टेड प्रतिभूतियों में लेन-देन को सुविधाजनक बना रहे हैं, जो कि प्रतिभूति अनुबंध विनियमन अधिनियम (SCRA) का उल्लंघन है।
इसके अलावा, सेबी ने निवेशकों को चेताया है कि अगर वे इन प्लेटफॉर्म्स पर लेन-देन करते हैं, तो सेबी द्वारा संचालित निवेशक सुरक्षा ढांचा इन लेन-देन पर लागू नहीं होगा। यह विकास इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि हजारों निवेशक अनलिस्टेड कंपनियों के शेयर इस उम्मीद से खरीद रहे हैं कि उन्हें ऊंचा रिटर्न मिलेगा।
निवेशक कौन से अनलिस्टेड शेयर और कहां से खरीद रहे हैं?
वर्तमान में, कई विशेष ब्रोकर, जो सेबी के साथ पंजीकृत नहीं हैं, इन शेयरों को बेच रहे हैं। ये आम तौर पर छोटे ब्रोकर हैं और किसी प्रतिष्ठित बाजार मध्यस्थ से जुड़े नहीं होते। बिक्री के लिए पेश किए गए शेयरों में मुख्य रूप से वे कंपनियां शामिल हैं, जिन्होंने लिस्टिंग की घोषणा की है या भविष्य में लिस्टिंग की योजना बनाई है।
निवेशक इन शेयरों को IPO से पहले खरीदकर ज्यादा मुनाफा कमाने का लक्ष्य रखते हैं। उदाहरण के लिए, Swiggy के IPO से पहले कई निवेशकों ने इन प्लेटफॉर्म्स से इसके शेयर खरीदे। इसी तरह, OYO और Boat जैसे ब्रांडों के शेयरों की भी मांग है। यह ट्रेंड केवल टेक्नोलॉजी कंपनियों तक सीमित नहीं है; पारंपरिक बड़ी कंपनियों के शेयर भी लोकप्रिय हो रहे हैं। निवेशक NSE के शेयर भी IPO की उम्मीद में खरीद रहे हैं।
कुछ ब्रोकरों द्वारा अनलिस्टेड कंपनियों जैसे NSE, चेन्नई सुपर किंग्स (CSK), और HDFC बैंक समर्थित HDB फाइनेंशियल सर्विसेज के शेयर और IPO की योजना बना रहे कई स्टार्टअप्स के शेयर बेचे जा रहे हैं।
क्या अनलिस्टेड शेयरों में लेन-देन अवैध है?
किसी व्यक्ति के लिए अनलिस्टेड कंपनियों के शेयर खरीदना या बेचना अवैध नहीं है। लेकिन जब ब्रोकर खरीद और बिक्री के ऑर्डर मिलाने का काम करते हैं, तो यह अवैध हो जाता है। ऐसे ऑर्डर मिलान को प्लेटफॉर्म के रूप में काम करना माना जाता है, और भारत में ऐसा करने की अनुमति केवल स्टॉक एक्सचेंजों को है।
SCRA की धारा 19 में मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंजों के अलावा किसी अन्य को ऐसा करने से प्रतिबंधित किया गया है। इसके अलावा, SCRA के तहत अन्य प्रावधान भी हैं, जो मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंज के अलावा किसी अन्य के लिए डीलर के रूप में काम करने पर रोक लगाते हैं।
निवेशकों के लिए नियामकीय जोखिम क्या हैं?
ऐसे ब्रोकर, जो इन सेवाओं की पेशकश करते हैं, सेबी पंजीकृत मध्यस्थ नहीं हैं, और इनके लेन-देन किसी स्टॉक एक्सचेंज के दायरे में नहीं आते। इसलिए, अगर शेयरों के नुकसान, चोरी, या भुगतान प्राप्ति में समस्या होती है, तो निवेशकों को सेबी या स्टॉक एक्सचेंज के माध्यम से कोई समाधान नहीं मिलेगा।
इसके अलावा, स्टॉक एक्सचेंज धोखाधड़ी के मामलों में निवेशकों को मुआवजा प्रदान करते हैं, लेकिन अनरजिस्टर्ड प्लेटफॉर्म्स पर यह सुरक्षा उपलब्ध नहीं होती। विशेषज्ञों का कहना है कि निवेशकों को “डिलीवरी वर्सेस पेमेंट” (DVP) पर जोर देना चाहिए और निपटान जोखिम से बचना चाहिए।
ऐसे शेयर बेचने वाले ब्रोकरों के लिए जोखिम क्या हैं?
सेबी ने स्पष्ट किया है कि ऐसे शेयरों की पेशकश नियमों का उल्लंघन है। अतीत में, सेबी ने वर्चुअल ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म और अनियमित विकल्प अनुबंध बेचने वाले प्लेटफॉर्म्स पर भी इसी तरह की स्पष्टता जारी की थी।
कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि सेबी के पास ऐसे प्लेटफॉर्म्स के खिलाफ कार्रवाई करने की शक्ति है। सेबी, जो कि प्रतिभूति बाजारों का प्राथमिक नियामक है, ऐसे प्लेटफॉर्म्स पर प्रतिबंध और जुर्माना लगा सकता है। विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि निवेशकों को स्टॉक एक्सचेंज और सार्वजनिक रिकॉर्ड की वेबसाइट्स के माध्यम से जांच करनी चाहिए कि कंपनी सूचीबद्ध है या सूचीबद्ध होने की योजना बना रही है।