भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI) ने एसबीआई लाइफ इंश्योरेंस पर विभिन्न नियमों के उल्लंघन के लिए 1 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया है। ये उल्लंघन बीमा वेब एग्रीगेटर्स के साथ सौदों और आउटसोर्सिंग गतिविधियों से जुड़े हैं। इसके साथ ही, प्राधिकरण ने कंपनी को कई बीमा दावों को खारिज करने पर चेतावनी भी दी है।
वेब एग्रीगेटर्स और आउटसोर्सिंग नियमों का उल्लंघन
आईआरडीएआई की जांच में पाया गया कि एसबीआई लाइफ इंश्योरेंस ने कई वेब एग्रीगेटर्स के साथ काम किया, जिनमें पॉलिसीबाज़ार, एमआईसी इंश्योरेंस, कंपेयर पॉलिसी, ईज़ीपॉलिसी और विशफिन शामिल हैं। हालांकि, कंपनी ने प्रीमियम रिमाइंडर और पॉलिसी सर्विस असिस्टेंस जैसी पोस्ट-सेल गतिविधियों को आउटसोर्स करने का दावा किया, लेकिन समझौतों में सेवाओं और प्रति माह/प्रति सीट भुगतान संरचना का स्पष्ट उल्लेख नहीं किया गया था।
कंपनी ने 2017-18 और 2018-19 के दौरान Extent Marketing and Technologies Pvt. Ltd. को 1.93 करोड़ रुपये का भुगतान किया, लेकिन यह भुगतान आईआरडीएआई को रिपोर्ट नहीं किया गया। इस विक्रेता के पास स्वयं का कोई बुनियादी ढांचा नहीं था और 95% राजस्व तीसरे पक्षों को स्थानांतरित कर दिया गया था।
आईआरडीएआई ने निष्कर्ष निकाला कि कंपनी के आउटसोर्सिंग व्यवस्थाएँ हितों के टकराव, पारदर्शिता और उचित सावधानी के नियमों का उल्लंघन करती हैं। इसके अलावा, वेब एग्रीगेटर्स को अनुचित फीस का भुगतान किया गया था।
यह स्पष्ट है कि एसबीआई लाइफ ने नियामक प्रावधानों की धज्जियाँ उड़ाते हुए अपना काम चलाया है। सवाल यह उठता है कि आखिर कंपनी किस भरोसे पर इतनी ढीली व्यवस्था बना रही थी? क्या यह भी मान लें कि प्रीमियम वसूलने के बाद कंपनी की जवाबदेही खत्म हो जाती है?
मृत्यु दावों के निपटारे में धांधली
मृत्यु दावों के निपटारे में भी कंपनी की लापरवाही उजागर हुई है। आईआरडीएआई ने एसबीआई लाइफ इंश्योरेंस को बीमा अधिनियम, 1938 की धारा 45 का सख्ती से पालन करने की हिदायत दी है। प्राधिकरण की जांच में पता चला कि कंपनी ने 21 मृत्यु दावों को खारिज कर दिया था, जिसमें कारण बताया गया कि या तो जानकारी छुपाई गई थी या फिर पॉलिसी जारी होने के तीन साल के भीतर मृत्यु हो गई थी। लेकिन आईआरडीएआई को कंपनी द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य अपर्याप्त लगे।
कंपनी ने यह तर्क दिया कि उसने 2015 के आईआरडीएआई सर्कुलर के तहत काम किया था, जिसमें तीन साल के भीतर हुई मौत पर दावा खारिज करने का निर्देश दिया गया था। अब ये तर्क भी कम दिलचस्प नहीं है—कंपनी नियमों को अपनी सहूलियत के हिसाब से तोड़-मरोड़ कर पेश करती नजर आई।
फिर भी, आईआरडीएआई की हस्तक्षेप से कंपनी ने 86 दावे निपटाए, जिनका कुल भुगतान 10.21 करोड़ रुपये रहा। अब कंपनी को भविष्य में सभी दावों को कानून के अनुसार निपटाने का निर्देश दिया गया है।
वापस ली गई बीमा पॉलिसियों की बिक्री पर भी फटकार
आईआरडीएआई ने यह भी पाया कि एसबीआई लाइफ इंश्योरेंस ने उत्पाद वापस लेने के बाद भी बीमा पॉलिसियों की बिक्री जारी रखी। उदाहरण के तौर पर, 17 नवंबर 2017 को एक प्रपोजल फॉर्म भरा गया, जबकि उस बीमा उत्पाद को 20 नवंबर 2017 को लॉन्च किया गया था। यानी कि कंपनी ने उत्पाद की आधिकारिक लॉन्चिंग से पहले ही पॉलिसी बेचना शुरू कर दिया था।
कंपनी का तर्क था कि उसने पेंशन पॉलिसी के तहत पुराने संस्करण का उपयोग करके अनुबंध जारी किया था, लेकिन इस मामले में भी प्रणालीगत सुधारों की आवश्यकता महसूस की गई।