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Friday, November 22, 2024
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बायजूस के दिवालियापन मामले में GLAS ट्रस्ट का सुप्रीम कोर्ट में आवेदन, हटाए जाने पर सवाल

अमेरिका स्थित ग्लास ट्रस्ट एलएलसी ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में बायजूस के समाधान पेशेवर के खिलाफ एक नया आवेदन दायर किया है, जिसमें उसे कर्जदाता समिति (CoC) से हटाने का मुद्दा उठाया गया है।

ग्लास ट्रस्ट का आरोप है कि उसे कर्जदाताओं की सूची से हटाने से उसके दावों की हिस्सेदारी 99% से घटकर शून्य हो गई है। अमेरिका स्थित इस ऋणदाता ने दावा किया है कि उसका ₹11,000 करोड़ से अधिक का बकाया है।

समाधान पेशेवर द्वारा कुछ दस्तावेज़ न उपलब्ध कराने के कारण कर्जदाता समिति से ग्लास ट्रस्ट को कथित रूप से बाहर कर दिया गया था।

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने बुधवार को इस मामले की सुनवाई के लिए सहमति जताई है।

ग्लास ट्रस्ट ने 4 सितंबर को बेंगलुरु में राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (NCLT) के समक्ष इस मामले में अपील की थी, लेकिन चूंकि यह मामला सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष लंबित था, उसे कोई राहत नहीं मिली।

ग्लास ट्रस्ट की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि 19 अगस्त को कर्जदाता समिति का गठन IBC के तहत किया गया था और श्रीवास्तव ने ग्लास ट्रस्ट के दावों को सत्यापित कर स्वीकृत किया था, लेकिन बाद में उसे सूची से हटा दिया गया।

बीसीसीआई समझौता
ग्लास ट्रस्ट ने इससे पहले भी बायजूस और उसके परिचालन ऋणदाता भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) के बीच हुए समझौते को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। ग्लास ट्रस्ट का दावा था कि एक वित्तीय ऋणदाता के तौर पर उसके बकाया को क्रिकेट बोर्ड से पहले चुकाया जाना चाहिए था।

दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (IBC), 2016 के तहत, वित्तीय ऋणदाताओं को दिवालिया कंपनी की संपत्तियों पर प्राथमिक अधिकार होता है, जबकि परिचालन ऋणदाताओं का दावा बाद में आता है। भारत की IBC का उद्देश्य दोनों प्रकार के ऋणदाताओं के हितों को संतुलित करना है, ताकि सभी पक्षों के लिए निष्पक्ष और पारदर्शी दिवाला प्रक्रिया सुनिश्चित हो सके।

इस बीच, बायजूस दिवाला मामले में कर्जदाता समिति की बैठकों पर रोक लगाने की याचिका पर सुनवाई करते हुए बेंगलुरु NCLT बेंच ने अपने फैसले को स्थगित कर दिया है।

11 सितंबर को, बायजूस के एक अन्य ऋणदाता आदित्य बिड़ला फाइनेंस ने अंतरिम समाधान पेशेवर (IRP) पर चल रही कंपनी दिवाला समाधान प्रक्रिया में ‘धोखाधड़ी’ का आरोप लगाया। इस ऋणदाता ने दावा किया कि उसे गलत तरीके से परिचालन ऋणदाता के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

ग्लास ट्रस्ट का दावा सही है या नहीं, यह तो अदालत तय करेगी, लेकिन यहां बड़ा सवाल यह है कि ₹11,000 करोड़ का ऋण कैसे ‘गायब’ हो गया? और बायजूस जैसे बड़े ब्रांड का दिवालियापन का सफर भी कई सवाल खड़े करता है—क्या सिर्फ ‘अनुभवहीन’ वित्तीय प्रबंधन इसका कारण है, या फिर इसमें कुछ और गहरी परतें छुपी हुई हैं? आखिरकार, भारत में दिवाला प्रक्रियाएं क्या सिर्फ एक लीपापोती का खेल बनकर रह गई हैं?

Kavita Mishra
Kavita Mishrahttps://hindi.inventiva.co.in/
Kavita is a versatile content writer with a deep passion for news. Based in New Delhi, she has a keen interest in exploring the latest trends in the world of current affairs and delivering engaging content to her audience. Kavita has extensive experience working with Inventiva, where she honed her skills in content creation and developed a strong foundation in delivering high-quality, informative articles.
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