केंद्र सरकार बड़े लोन डिफॉल्ट खातों के लिए एक कर्जदाता-नेतृत्व वाली दिवाला समाधान प्रक्रिया पर काम कर रही है, ताकि बकाया वसूली की प्रक्रिया में तेजी लाई जा सके और दिवालियापन अदालतों पर दबाव कम किया जा सके।
इस प्रक्रिया में मुख्य रूप से अदालत से बाहर की व्यवस्थाएं शामिल होंगी, जहां कर्जदाता और देनदार एक अनौपचारिक समाधान योजना पर सहमत हो सकेंगे। नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) की भूमिका इन योजनाओं को मंजूरी देने में सीमित होगी, जिससे मामलों को सुलझाने में लगने वाला समय काफी हद तक कम हो जाएगा।
प्रस्तावित प्रक्रिया के तहत समाधान की समयसीमा 150 दिनों की हो सकती है, जो वर्तमान में लागू 270-दिवसीय सीमा से कहीं कम होगी। यह कदम कर्जदाताओं के लिए वसूली प्रक्रिया में तेजी लाएगा और लंबी कानूनी प्रक्रिया से होने वाले वित्तीय नुकसान को कम करेगा।
हालांकि प्री-पैकेज्ड दिवालिया योजना, जो कि छोटे कंपनियों पर लागू होती है, उसमें अधिक अनौपचारिक प्रक्रिया और कम समयसीमा होती है, लेकिन इस नए कर्जदाता-नेतृत्व वाले ढांचे को बड़े लोन डिफॉल्ट खातों पर लागू किया जाएगा।
सरकार इस नए दिवाला ढांचे को दिसंबर में संसद के शीतकालीन सत्र में पेश करने की योजना बना रही है।
प्रस्तावित ढांचा वर्तमान कॉर्पोरेट दिवालिया समाधान प्रक्रिया (CIRP) से कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों में अलग होगा। एक प्रमुख बदलाव औपचारिक दिवालिया प्रवेश प्रक्रिया को खत्म करना है, जो अक्सर देरी और मुकदमों का कारण बनती है।
नए ढांचे के तहत, देनदारों को NCLT द्वारा समाधान योजना स्वीकृत होने तक अपनी कंपनियों पर नियंत्रण बनाए रखने का अवसर मिलेगा। यह CIRP से एक बड़ा बदलाव है, जहां आमतौर पर दिवाला मामले में दाखिल होने पर देनदारों का नियंत्रण समाप्त हो जाता है।
सरकार इस नए ढांचे को चरणबद्ध तरीके से लागू करने पर विचार कर रही है, जो कि भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता बोर्ड (IBBI) के पूर्णकालिक सदस्य सुदाकर शुक्ला की अध्यक्षता में बनी एक पैनल की सिफारिशों के अनुरूप होगा।