2023-24 (जुलाई-जून) में भारत की बेरोज़गारी दर 3.2% पर स्थिर रही, जबकि महिलाओं की बेरोज़गारी दर पिछले वर्ष के 2.9% से बढ़कर 3.2% हो गई। यह जानकारी 23 सितंबर को जारी वार्षिक आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) रिपोर्ट में सामने आई है।
पुरुषों की बेरोज़गारी दर, ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों के लिए, 3.3% से घटकर 3.2% हो गई।
दूसरी ओर, महिला श्रम बल भागीदारी सात साल में अपने उच्चतम स्तर पर पहुँच गई, जो पिछले वर्ष के 37% की तुलना में 41.7% हो गई। यह पहला साल है जब महिला श्रम बल भागीदारी 40% के पार गई है।
हालाँकि, यह पुरुषों की श्रम बल भागीदारी से अभी भी काफी कम है, जो 78.8% के साथ सात साल के उच्चतम स्तर पर है।
भारतीय अर्थव्यवस्था ने इस दौरान औसतन 7.8% की वृद्धि दर दर्ज की।
ग्रामीण-शहरी विभाजन
बेरोज़गारी दर के स्थिर रहने का मुख्य कारण ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोज़गारी दर का 2.4% से बढ़कर 2.5% हो जाना था। इस दौरान शहरी बेरोज़गारी 5.4% से घटकर 5.1% हो गई।
इस प्रवृत्ति का असर उपभोक्ता मांग पर भी पड़ा, जो ग्रामीण क्षेत्रों से कमज़ोर मांग के कारण दबाव में रही।
वित्त वर्ष 2023-24 में भारत की उपभोक्ता मांग वृद्धि 4% पर बनी रही, जो अप्रैल-जून 2024 में थोड़ा बेहतर हुई।
ग्रामीण मांग का प्रतीक उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं का उत्पादन अधिकांश वर्ष के लिए संकुचित रहा, जबकि गैर-टिकाऊ क्षेत्र ने बेहतर प्रदर्शन किया।
शहरी क्षेत्रों में बेरोज़गारी सात वर्षों के निचले स्तर पर थी।
पुरुष-महिला विभाजन
शहरी क्षेत्रों में महिलाओं की स्थिति में सुधार हुआ, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति और बिगड़ गई।
ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोज़गारी बढ़ने का मुख्य कारण महिलाओं की बेरोज़गारी थी, जबकि पुरुषों की बेरोज़गारी दर 2.7% पर स्थिर रही।
ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं की बेरोज़गारी दर 2023-24 में 2.1% हो गई, जो पिछले वर्ष 1.8% थी।
वहीं शहरी क्षेत्रों में महिलाओं की बेरोज़गारी दर 7.5% से घटकर 7.1% हो गई, जबकि पुरुषों की बेरोज़गारी दर 4.7% से घटकर 4.4% हो गई।
पुरुषों की नियमित वेतन/वेतनभोगी नौकरियों में भागीदारी भी पिछले वर्ष की तुलना में बढ़ी, लेकिन महिलाओं के लिए इसमें कोई बदलाव नहीं देखा गया।
सवाल ये उठता है कि जब अर्थव्यवस्था 7.8% की दर से फल-फूल रही है, तो महिलाएं इससे कैसे बाहर रह रही हैं? क्या ये महज़ संयोग है कि पुरुषों की भागीदारी और नौकरियां बढ़ रही हैं, जबकि महिलाएं संघर्ष कर रही हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि विकास का जश्न आधा-अधूरा है और असल में कई हिस्सों को पीछे छोड़ दिया गया है?