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Monday, November 18, 2024
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क्या सरकारी मेडिकल कॉलेजों में डॉक्टर और नर्से खुद सुरक्षित नहीं?

एक सर्वेक्षण में भाग लेने वाले आधे से अधिक स्वास्थ्यकर्मी मानते हैं कि उनका कार्यस्थल असुरक्षित है, खासकर राज्य और केंद्र सरकार के मेडिकल कॉलेजों में।

हाल ही में जर्नल ‘एपिडेमियोलॉजी इंटरनेशनल’ में प्रकाशित अध्ययन “भारतीय स्वास्थ्य सेवाओं में कार्यस्थल की सुरक्षा और संरक्षा: एक क्रॉस-सेक्शनल सर्वे” ने स्वास्थ्य सेवाओं में मौजूदा सुरक्षा और संरक्षा उपायों को सुधारने की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित किया है।

वर्धमान महावीर मेडिकल कॉलेज (VMMC), सफदरजंग अस्पताल और AIIMS, नई दिल्ली के विशेषज्ञों द्वारा किए गए इस अध्ययन में भारतीय स्वास्थ्य सेवाओं की सुरक्षा संरचना में “महत्वपूर्ण खामियों” पर जोर दिया गया है।

यह सर्वेक्षण VMMC और सफदरजंग अस्पताल के डॉ. कार्तिक चाधर और डॉ. जुगल किशोर के साथ-साथ AIIMS, नई दिल्ली के डॉ. ऋचा मिश्रा, डॉ. सैमंती दास, डॉ. इंद्र शेखर प्रसाद और डॉ. प्रकल्प गुप्ता के सहयोग से किया गया है।

1,566 स्वास्थ्यकर्मियों पर किए गए इस क्रॉस-सेक्शनल सर्वे में विविध चिकित्सा संस्थानों के स्वास्थ्यकर्मी शामिल थे, जिनसे एक पूर्व-निर्धारित ऑनलाइन प्रश्नावली के माध्यम से कार्यस्थल की सुरक्षा के विभिन्न पहलुओं का मूल्यांकन किया गया। समूहों के बीच अंतर को समझने के लिए लॉजिस्टिक रिग्रेशन का उपयोग किया गया।

सर्वे में 869 (55.5 प्रतिशत) महिलाएं और 697 (44.5 प्रतिशत) पुरुष शामिल थे। लगभग एक-चौथाई (24.7 प्रतिशत) स्वास्थ्यकर्मी दिल्ली से थे, और आधे से अधिक रेजिडेंट डॉक्टर (49.6 प्रतिशत) थे, जिनके बाद अंडरग्रेजुएट मेडिकल छात्र (इंटर्न समेत 15.9 प्रतिशत) शामिल थे।

सर्वेक्षण में फैकल्टी सदस्य, चिकित्सा अधिकारी, नर्सिंग स्टाफ और अन्य सहायक कर्मचारी भी शामिल थे।

अधिकांश उत्तरदाता सरकारी मेडिकल कॉलेजों (71.5 प्रतिशत) में कार्यरत थे। इनमें से आधे (49.2 प्रतिशत) गैर-सर्जिकल विभागों में कार्यरत थे, जबकि एक-तिहाई (33.8 प्रतिशत) सर्जिकल विभागों में थे।

अध्ययन के अनुसार, 58.2 प्रतिशत स्वास्थ्यकर्मी अपने कार्यस्थल पर असुरक्षित महसूस करते हैं, जबकि 78.4 प्रतिशत ने ड्यूटी पर धमकी मिलने की बात कही।

लगभग आधे स्वास्थ्यकर्मियों के पास लंबे समय तक या रात में काम करने के दौरान विशिष्ट ड्यूटी रूम की सुविधा नहीं है।

जो ड्यूटी रूम उपलब्ध हैं, वे बुनियादी सुविधाएं जैसे नियमित सफाई, कीट नियंत्रण, वेंटिलेशन, कमरा स्पेस और एयर कंडीशनिंग देने में असमर्थ हैं।

अध्ययन में यह भी खुलासा हुआ कि 90 प्रतिशत से अधिक संस्थानों में हथियार या खतरनाक वस्तुओं की ठीक से जांच नहीं की जाती है, और तीन-चौथाई से अधिक संस्थानों में सुरक्षित अस्पताल सीमाएं नहीं हैं। इन खामियों ने स्वास्थ्यकर्मियों और मरीजों दोनों की सुरक्षा पर गंभीर खतरे को उजागर किया है।

डॉ. किशोर ने कहा कि राज्य सरकार के मेडिकल कॉलेजों में 63 प्रतिशत से अधिक उत्तरदाता सुरक्षा कर्मियों की संख्या से असंतुष्ट हैं, और उनका असंतोष निजी कॉलेजों की तुलना में चार गुना अधिक है।

इस अध्ययन ने विशेष रूप से उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों जैसे आईसीयू और मनोरोग वार्डों में सुरक्षा को मजबूत करने की सिफारिश की है, साथ ही सुरक्षा कर्मियों की संख्या बढ़ाने और ड्यूटी रूम की स्थिति सुधारने की आवश्यकता पर भी जोर दिया है।

स्पष्ट हिंसा प्रबंधन प्रोटोकॉल को लागू करना और राष्ट्रीय एजेंसियों के साथ नियमित सुरक्षा प्रशिक्षण व सहयोग करना भी इस अध्ययन की सिफारिशों में शामिल है।

यह किस प्रकार की विडंबना है कि जिस देश में स्वास्थ्य सेवाओं का ढांचा पहले से ही चरमराया हुआ है, वहां डॉक्टर और नर्से ही अपने कार्यस्थल पर असुरक्षित महसूस कर रहे हैं? ये राज्य सरकार के मेडिकल कॉलेज क्या वास्तव में ‘स्वास्थ्य सेवाएं’ दे रहे हैं या फिर ‘असुरक्षा’ का सबक सिखा रहे हैं? जब खुद अस्पतालों में सुरक्षा इतनी बदहाल है, तो आम जनता की सुरक्षा का क्या हाल होगा? शायद सरकारी नीतियां इस विषय पर मौन साधने में ही अपनी सुरक्षा देख रही हैं!

Kavita Mishra
Kavita Mishrahttps://hindi.inventiva.co.in/
Kavita is a versatile content writer with a deep passion for news. Based in New Delhi, she has a keen interest in exploring the latest trends in the world of current affairs and delivering engaging content to her audience. Kavita has extensive experience working with Inventiva, where she honed her skills in content creation and developed a strong foundation in delivering high-quality, informative articles.
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