सरकार ने सरकारी स्वामित्व वाली स्टील कंपनी RINL (राष्ट्रीय इस्पात निगम लिमिटेड) को उसके गंभीर वित्तीय और परिचालन मुद्दों से निकालने के लिए लगभग ₹1,650 करोड़ का निवेश किया है। एक आधिकारिक दस्तावेज के अनुसार, यह निवेश कंपनी को सक्रिय बनाए रखने के उद्देश्य से किया गया है।
इस संबंध में, केंद्रीय इस्पात मंत्रालय ने कहा कि भारत सरकार ने 19 सितंबर 2024 को कंपनी के इक्विटी में ₹500 करोड़ का निवेश किया और 27 सितंबर 2024 को ₹1,140 करोड़ का वर्किंग कैपिटल लोन प्रदान किया।
क्या होगा इसका स्थायित्व?
RINL के भविष्य को लेकर भी चिंता है, और इस दिशा में SBI की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी SBICAPS एक रिपोर्ट तैयार कर रही है जो RINL की स्थिरता का आकलन करेगी। यह रिपोर्ट यह बताएगी कि क्या ऐसे अल्पकालिक कर्जों से कंपनी अपने पैरों पर खड़ी हो पाएगी या नहीं।
वित्तीय संकट से जूझती RINL, जिसके 35,000 करोड़ रुपये से अधिक के बकाया हैं, अपने 7.5 मिलियन टन क्षमता वाले विशाखापत्तनम स्थित संयंत्र के साथ वित्तीय मुश्किलों में घिर चुकी है। तीन ब्लास्ट फर्नेसों में से दो को अक्टूबर 2028 तक बंद कर दिया गया था, और दूसरा ब्लास्ट फर्नेस लगभग 4-6 महीने बाद फिर से शुरू हुआ।
इस संकट में मजेदार बात यह है कि इस्पात मंत्रालय ने RINL को उबारने के लिए इतनी बड़ी राशि झोंक दी, लेकिन यह कदम कितना कारगर होगा, यह सवाल उठता है। ऐसे कर्जों से कंपनी की समस्याएं और बढ़ सकती हैं, क्या सरकार को सच में इससे कुछ हासिल होगा?
जनवरी 2021 में, आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने RINL की 100 प्रतिशत हिस्सेदारी के विनिवेश के लिए ‘सिद्धांत रूप में’ मंजूरी दे दी थी। इसके तहत RINL और उसकी सहयोगी कंपनियों/संयुक्त उपक्रमों की हिस्सेदारी का निजीकरण के माध्यम से रणनीतिक विनिवेश किया जाना था।
RINL के निजीकरण के खिलाफ श्रमिक संघों में गहरा असंतोष है। वे इसे RINL के पास कैप्टिव आयरन ओर खदानों की कमी से जोड़ते हैं। निजी इस्पात निर्माता अपने ब्लास्ट फर्नेस का संचालन कैप्टिव खदानों के माध्यम से करते हैं, जिससे उनके लिए कच्चे माल की लागत कम होती है।
RINL के श्रमिक संघ के नेता, जे अयोध्या राम का कहना है, “RINL के पास कभी कैप्टिव खदानें नहीं थीं। अन्य प्राथमिक इस्पात उत्पादकों के पास यह सुविधा है जिससे कच्चे माल की लागत कम हो जाती है। हमें हमेशा बाज़ार मूल्य पर आयरन ओर खरीदना पड़ता है, जिसमें परिवहन लागत भी जुड़ जाती है।”