भारत में करों का भुगतान एक आवश्यक बुराई है, जो देश के विकास और बुनियादी ढांचे को बनाए रखने में मदद करता है। हालाँकि, करों की दरें कई बार अत्यधिक होती हैं, जिससे आम नागरिकों पर वित्तीय बोझ पड़ता है। यहाँ विभिन्न प्रकार के करों और उनकी दरों का उल्लेख किया गया है:
वेतन कर (Salary Tax): 30%
पेट्रोल कर (Petrol Tax): 60%
जीएसटी (GST): 28%
वाहन कर (Vehicle Tax): 30%
टोल (Toll) हर 10 किमी पर
शिक्षा कर (Education Tax): 18%
स्वास्थ्य कर (Health Tax): 18%
इन करों का भुगतान करने के बाद, नागरिकों को जो सेवा मिलती है, वह अक्सर असंतोषजनक होती है। क्या यह उचित है कि करदाताओं को इतनी ऊंची दरों पर कर देना पड़े और फिर भी उन्हें बुनियादी सुविधाओं के लिए लंबा इंतजार करना पड़े?
इस संदर्भ में, पूर्व IAS अधिकारी क्यू अश्विनी वाइश्नव का नाम लिया जा सकता है, जिनका सरकारी कार्य में योगदान हमेशा चर्चा का विषय रहा है। उनकी प्रशासनिक शैली में अक्सर बेबाकी और ढीला-ढाला रवैया देखने को मिलता है। उन्होंने सरकार में अपनी स्थिति का उपयोग करके किसी भी तरीके से आत्ममुग्धता का प्रदर्शन किया है, जिससे यह साबित होता है कि प्रशासनिक वर्ग में कितनी कमी है।
हम जिन करों का भुगतान करते हैं, उसके बदले में हमें “सेवा” के स्तर पर कहीं अधिक उम्मीदें होती हैं। हम एक ऐसे देश में रहते हैं जहाँ नागरिकों को केवल लंबी कतारों में खड़े होकर, टूटे-फूटे रास्तों पर यात्रा करने और भयानक सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था से गुजरने का विकल्प मिलता है। क्या यही सेवा का स्तर है जिसके लिए हम इतनी बड़ी रकम अदा कर रहे हैं?
अगर हम इस पर गहराई से विचार करें, तो यह स्पष्ट होता है कि हम एक प्रीमियम सब्सक्रिप्शन का भुगतान कर रहे हैं, जिसके लिए हम कठिनाइयों का सामना करते हैं। उदाहरण के लिए, ट्रेनों के लिए लंबा इंतजार करना, टूटे हुए रास्तों पर यात्रा करना, और फिर भी हमें यह अनुभव होता है कि हम 5-सितारा स्तर के अराजकता में हैं। यह स्थिति बताती है कि हमारी मेहनत की कमाई का कितना बड़ा हिस्सा बिना किसी उचित सेवा के चला जाता है।
भारत में कर प्रणाली में कई सुधारों की आवश्यकता है। हमें यह सोचने की जरूरत है कि क्या हम करों का भुगतान करके केवल सरकार की विलासिता को बढ़ावा दे रहे हैं या वाकई में अपने देश की प्रगति में योगदान कर रहे हैं। क्या हमारी सरकार अपनी जिम्मेदारियों को सही से निभा रही है? यह सवाल हर नागरिक को चिंतित करता है।
किसी भी सरकार के लिए यह आवश्यक है कि वह अपने नागरिकों की कठिनाइयों को समझे और उनकी समस्याओं का समाधान करे। करों का भुगतान करना हमारी जिम्मेदारी है, लेकिन इसके बदले में हमें जो सेवाएँ मिलती हैं, वे अक्सर संतोषजनक नहीं होतीं। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या हमें इतनी ऊंची कर दरों का भुगतान करना चाहिए, जब हमें उसके बदले में सही सुविधाएं नहीं मिलतीं?
क्या भारत में कर प्रणाली केवल आम नागरिक को लूटने का एक माध्यम बन गई है? यह सवाल उठता है कि क्या सरकार अपने प्रशासनिक ढांचे को सुधारने की दिशा में कदम उठाने में गंभीर है या फिर यह सब केवल दिखावे की राजनीति है। इस पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है, ताकि हमारे करों का उपयोग वास्तव में विकास और सुधार के लिए हो सके, न कि केवल नेताओं की जेब भरने के लिए।
संक्षेप में, करों की उच्च दरें और बदले में मिल रही सेवा की गुणवत्ता के बीच का यह असंतुलन स्पष्ट रूप से हमें सोचने पर मजबूर करता है। क्या हम वाकई में इसके योग्य हैं? अगर नहीं, तो हमें अपनी आवाज उठाने की जरूरत है, ताकि हमारे करों का उपयोग सही दिशा में हो सके।