वैश्विक भू-राजनीति आधुनिक हथियारों की दौड़ को तेजी से प्रभावित कर रही है। सुरक्षा चिंताओं, सत्ता संघर्ष और बदलते गठजोड़ों के चलते देश अपने सैन्य क्षमताओं को बढ़ाने और आधुनिक बनाने में लगे हैं। भारत ने 16 नवंबर को अपनी स्वदेशी लंबी दूरी की हाइपरसोनिक मिसाइल का सफल परीक्षण करके इस दिशा में बड़ी छलांग लगाई है।
रविवार को रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने घोषणा की कि यह परीक्षण पूरी तरह से सफल रहा। हाइपरसोनिक मिसाइलें ऐसी होती हैं जो ध्वनि की गति से पांच गुना तेज़ (मैक 5 से अधिक) की रफ्तार से उड़ सकती हैं और काफी दूर स्थित लक्ष्यों को भेदने में सक्षम होती हैं।
भारत की यह मिसाइल 1,500 किमी से अधिक की दूरी तक हथियार पहुंचाने में सक्षम है। हाइपरसोनिक मिसाइलों में उच्च गति, कुशल गतिशीलता और सटीकता होती है, जो इन्हें पता लगाना और रोकना बेहद कठिन बना देती हैं।
हाइपरसोनिक मिसाइलों के प्रकार:
हाइपरसोनिक मिसाइलों के दो प्रमुख प्रकार हैं:
- ग्लाइड वाहन – जिन्हें रॉकेट की मदद से लॉन्च किया जाता है और यह वातावरण में हाइपरसोनिक गति से ग्लाइड करते हैं।
- क्रूज़ मिसाइलें – जिन्हें स्क्रैमजेट इंजनों से ऊर्जा मिलती है, जो इन्हें उड़ान के दौरान इन गति को बनाए रखने में सक्षम बनाता है।
DRDO के इस सफल परीक्षण के साथ, भारत अब लंबी दूरी की हाइपरसोनिक हथियार तकनीक रखने वाले देशों के विशेष क्लब में शामिल हो गया है।
अन्य देशों की तकनीक:
रूस ने यूक्रेन के खिलाफ अपने किंझाल और जिरकॉन हाइपरसोनिक मिसाइलों का इस्तेमाल किया है। किंझाल हवा से लॉन्च की जाने वाली मिसाइल है, जो मैक 10 की गति से चल सकती है और लगभग 2,000 किमी की सीमा में लक्ष्य को भेद सकती है।
चीन ने पिछले वर्ष अपनी दो नई हाइपरसोनिक मिसाइलें DF-27 और YJ-21 लॉन्च की थीं। अमेरिका की डार्क ईगल मिसाइल की रेंज 2,760 किमी है, और यह 6,080 किमी/घंटा की रफ्तार तक पहुंच सकती है।
फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया और जापान भी हाइपरसोनिक तकनीक विकसित कर रहे हैं।
तकनीक के साथ जोखिम भी:
हथियारों की इस दौड़ में अब कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का उपयोग भी बढ़ रहा है। AI इन मिसाइलों को लाइव डेटा, रडार डिटेक्शन और दुश्मन के अवरोधकों से बचने के लिए सक्षम बना रहा है। यह न केवल इन मिसाइलों को तेजी से लक्ष्यों तक पहुंचने में मदद करता है, बल्कि उड़ान पथ में बदलाव कर ट्रैकर्स को चकमा भी देता है।
हालांकि, यह दौड़ काफी महंगी है। इस वर्ष दुनिया का रक्षा खर्च $2.44 ट्रिलियन तक पहुंचने की उम्मीद है। अकेले अमेरिका $831 बिलियन और चीन $227 बिलियन खर्च करेगा। रूस तीसरे और भारत चौथे स्थान पर है, जिसमें हमारा रक्षा बजट $74 बिलियन है।