दिल्ली और एनसीआर में वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर के कारण सरकार ने स्कूलों को बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए खास गाइडलाइन्स जारी की हैं। इन गाइडलाइन्स के तहत स्कूलों को ऑनलाइन क्लासेज, एयर प्यूरीफायर्स, और अन्य उपायों का पालन करना अनिवार्य किया गया है। लेकिन स्कूलों ने इस स्थिति को भी अपनी कमाई का जरिया बना लिया है।
माता-पिता का आरोप है कि स्कूल प्रबंधन इस संकट का फायदा उठाते हुए अतिरिक्त फीस वसूल रहे हैं। कई स्कूल एयर प्यूरीफायर्स और अन्य उपकरणों के लिए बच्चों की मासिक फीस में ₹1000 से ₹2000 तक की बढ़ोतरी कर रहे हैं। इतना ही नहीं, कुछ स्कूलों ने ‘स्वास्थ्य शुल्क’ के नाम पर एकमुश्त राशि की मांग शुरू कर दी है।
एक अभिभावक ने बताया कि उनकी आर्थिक स्थिति पहले ही महंगाई और अन्य खर्चों के कारण कमजोर है, और अब स्कूलों के इस नए खर्च ने उन्हें और मुश्किल में डाल दिया है। सवाल यह है कि क्या हर परिवार ऐसी अतिरिक्त फीस का बोझ उठाने में सक्षम है? क्या बच्चों की शिक्षा और सुरक्षा के नाम पर हो रही यह वसूली जायज है?
इस पूरे प्रकरण में एक और बड़ा सवाल उठता है – जब सरकार द्वारा वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए कदम उठाए जा रहे हैं, तो क्या यह स्कूलों का दायित्व नहीं होना चाहिए कि वे बच्चों की सुरक्षा को प्राथमिकता दें, न कि इसे एक और कमाई का मौका बना लें?
क्या बच्चों की पढ़ाई अब वाकई एक “निस्वार्थ सेवा” रह गई है, या फिर यह भी एक मुनाफा कमाने वाला कारोबार बन चुका है? शिक्षा का व्यवसायीकरण तो पुराना मुद्दा है, लेकिन अब स्कूलों ने प्रदूषण जैसी गंभीर समस्या को भी पैसा कमाने का जरिया बना लिया है। सवाल यह है कि क्या माता-पिता को इस तरह से हर परिस्थिति का खामियाजा भुगतना पड़ेगा, या फिर कभी बच्चों की शिक्षा और उनकी सुरक्षा को ईमानदारी से प्राथमिकता दी जाएगी?
यह स्थिति न केवल अभिभावकों के लिए चिंता का विषय है, बल्कि यह शिक्षा जगत पर भी एक सवालिया निशान खड़ा करती है।