दिल्ली इस समय डेंगू और मलेरिया जैसी गंभीर बीमारियों की चपेट में है। राजधानी में स्वास्थ्य सेवाएं चरमराई हुई नजर आ रही हैं, और इसके लिए नगर निगम (MCD) का भ्रष्टाचार मुख्य रूप से जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। हर साल की तरह इस बार भी बारिश के बाद पानी के ठहराव और गंदगी से बीमारियों का प्रकोप बढ़ गया है। लेकिन, सवाल यह उठता है कि नगर निगम ने इन समस्याओं से निपटने के लिए क्या किया?
हाल ही में हुए एक सर्वेक्षण में यह सामने आया है कि कई इलाकों में फॉगिंग और सफाई अभियान या तो नाममात्र के लिए हुए या पूरी तरह से गायब हैं। इसके अलावा, कचरे के ढेर और नालियों की सफाई में भी घोर लापरवाही देखने को मिली है।
दिलचस्प बात यह है कि हर साल नगर निगम इन कार्यों के लिए करोड़ों रुपये का बजट आवंटित करता है। लेकिन यह पैसा आखिर जा कहां रहा है? क्या यह जनता की जेब से वसूला गया टैक्स भ्रष्ट अधिकारियों की जेबों में जा रहा है?
ऐसे हालात में जनता को तो शायद यह सोचना पड़ेगा कि मच्छरों से निपटने के लिए नगर निगम पर भरोसा किया जाए या मच्छरदानी पर! दिल्ली जैसे शहर में जहां ‘वर्ल्ड क्लास’ सुविधाओं की बात होती है, वहां डेंगू और मलेरिया का आतंक साबित करता है कि असली ‘वर्ल्ड क्लास’ केवल अधिकारियों की जेबें हैं।
सरकार और नगर निगम के अधिकारी चाहे जितने बड़े दावे करें, जब तक भ्रष्टाचार पर नकेल नहीं कसी जाती, तब तक आम जनता को मच्छरों और बीमारियों से जूझने के लिए अकेला ही छोड़ दिया जाएगा। क्या जनता के जान और स्वास्थ्य की कीमत पर यह भ्रष्टाचार जारी रहेगा?
यह स्थिति न केवल प्रशासनिक लापरवाही को उजागर करती है, बल्कि यह भी सवाल खड़ा करती है कि ऐसे निकायों को जवाबदेही कब दी जाएगी।