अमेरिका में ट्रंप प्रशासन के नए “गवर्नमेंट एफिशिएंसी विभाग” की स्थापना, जिसमें एलन मस्क और विवेक रामास्वामी शामिल हैं, ने सरकारी कार्यक्षमता पर चर्चा को तेज कर दिया है। वहीं, भारत अपनी शासकीय प्रक्रियाओं को सरल और व्यवस्थित बनाने के लिए लगातार सुधार कर रहा है, जिससे लालफीताशाही को खत्म किया जा सके।
प्रक्रिया सुधार: छोटे कदम, बड़े परिणाम
संसार में जटिल नीतियों और नियमों के बीच, यह अक्सर भुला दिया जाता है कि साधारण प्रक्रिया सुधार भी बड़े बदलाव ला सकते हैं। ये सुधार छोटे-छोटे, लक्षित कदम हैं जो किसी विशेष क्षेत्र में प्रक्रियाओं को सरल बनाने के लिए उठाए जाते हैं।
प्रक्रिया सुधार बुनियादी ढांचे को बदले बिना संचालित किए जाते हैं, जिससे फीडबैक के माध्यम से लगातार सुधार संभव होता है। भारत में लेबलिंग नियमों का क्षेत्र ऐसा ही एक उदाहरण है, जहां सुधार की आवश्यकता स्पष्ट रूप से दिखती है।
लेबलिंग नियमों की चुनौतियां
पैकेजिंग और लेबलिंग के नियम ग्राहकों को सही जानकारी देने के लिए बनाए गए हैं, लेकिन कई बार ये व्यापारिक कार्यक्षमता में बाधा बन जाते हैं। इनसे जुड़ी तीन मुख्य समस्याएं हैं:
- कई नियम और उनका जटिल स्वरूप
लेबलिंग से संबंधित नियमों में शामिल हैं:- फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स (लेबलिंग एंड डिस्प्ले) रेगुलेशन, 2020
- ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940
- कॉस्मेटिक रूल्स, 2020
- लीगल मेट्रोलॉजी (पैकेज्ड कमोडिटीज) रूल्स, 2011
- प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट (सेकेंड अमेंडमेंट) रूल्स, 2022
इन अलग-अलग नियमों के चलते छोटे व्यवसायों को भारी वित्तीय और संचालनात्मक बोझ झेलना पड़ता है। गैर-अनुपालन की स्थिति में भारी जुर्माने का सामना करना पड़ता है, जो नवाचार और वृद्धि को बाधित करता है।
- नियमों में स्थिरता का अभाव
2020 से 2024 के बीच लेबलिंग नियमों में लगभग 28 संशोधन हुए:- 10 संशोधन फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स एक्ट में
- लीगल मेट्रोलॉजी एक्ट और प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स में अन्य बदलाव
2022 में नौ बार लेबलिंग नियम बदले गए। 2023 में पांच और 2024 में चार बदलाव किए गए।
- अचानक और अप्रत्याशित बदलाव
नियमों में अचानक बदलाव व्यवसायों के लिए कठिनाई पैदा करते हैं। पैकेजिंग सामग्री बड़ी मात्रा में तैयार की जाती है, और नियमों में बदलाव से पूरा स्टॉक बेकार हो सकता है। इससे छोटे व्यवसायों को न केवल आर्थिक नुकसान होता है, बल्कि पर्यावरणीय चुनौतियां भी बढ़ती हैं।
समस्या का समाधान
सरल प्रक्रिया सुधार से इन समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, प्रत्येक वर्ष 1 जनवरी और 1 जुलाई को ही लेबलिंग से जुड़े नियमों में बदलाव किए जाएं। इससे व्यवसायों को अपने कच्चे माल, उत्पादन और भंडारण की योजना बनाने में आसानी होगी।
एफएसएसएआई (FSSAI) ने इस सुझाव पर विचार करना शुरू किया है। उपभोक्ता मामले मंत्रालय को भी इसे अपनाना चाहिए। ऐसा ही एक उदाहरण विदेशी निवेश नीतियों में देखने को मिलता है, जहां डीपीआईआईटी (DPIIT) एकीकृत एफडीआई नीति दस्तावेज प्रकाशित करता है।
निष्कर्ष
प्रक्रिया सुधार छोटे लग सकते हैं, लेकिन उनका प्रभाव बड़ा होता है। ये न केवल व्यवसायों को लागत और समय बचाने में मदद करते हैं, बल्कि भारत के नियामक ढांचे को भी स्थिर और पारदर्शी बनाते हैं। ऐसे सुधार सूक्ष्म, लेकिन दीर्घकालिक विकास का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं।