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Thursday, December 26, 2024
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महाराष्ट्र चुनाव परिणाम: कौन जीता, कौन हारा, और किसके पास है जादुई शक्ति?

कुछ दिनों पहले, नई दिल्ली में आयोजित एक “पावर डिनर” के दौरान दो नेताओं ने, जो अलग-अलग गठबंधनों के केंद्रीय मंत्रिमंडल में रह चुके हैं, मुझसे पूछा: “महाराष्ट्र चुनाव का नतीजा क्या होगा?” मैंने पलटकर कहा: “आप दोनों तो ‘राजनीतिक जानकार’ हैं, मुझे बताइए।”

सत्तारूढ़ गठबंधन से संबंधित नेता ने कहा कि उनका गठबंधन सत्ता में वापस आएगा। उन्होंने विश्वास जताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास एक “सिद्धि” (जादुई शक्ति) है, जो उन्हें सबसे कठिन परिस्थितियों से बाहर निकलने में मदद करती है। यह चुनाव उस “जादू” का एक और प्रमाण होगा।

दूसरी ओर, विपक्षी नेता, जो उस दिन मुंबई से चुनाव प्रचार की समीक्षा बैठक से लौटे थे, ने कहा: “हरियाणा चुनाव परिणाम के बाद मैंने चुनावी भविष्यवाणियां करना छोड़ दिया है। मुझे नहीं पता कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ऐसा कौन सा ‘गुप्त नुस्खा’ इस्तेमाल करती है, जिससे चुनाव प्रचार के अंतिम दिनों में मतदाताओं पर जादू सा असर होता है और हमारी सारी गणनाएं बेकार हो जाती हैं।”

अब यह “सिद्धि” क्या है, जिसका जिक्र पहले नेता ने किया? वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आध्यात्मिक शक्तियों की बात नहीं कर रहे थे, बल्कि उनकी राजनीतिक कुशलता और लोगों के मन को समझने की असाधारण क्षमता की ओर इशारा कर रहे थे। यही वजह है कि बीजेपी कार्यकर्ता मानते हैं कि अगर किसी चुनाव में सीटों का नुकसान होता है, तो अगले चुनाव में इसकी भरपाई कर ली जाएगी।

यह विश्वास न केवल उन्हें आत्मविश्वास देता है बल्कि एकजुट होकर काम करने की प्रेरणा भी देता है। महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणामों ने साबित किया है कि बीजेपी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने कुछ महीने पहले हुए झटकों से उबरकर फिर से मजबूती हासिल की है।

दूसरे नेता की बात से साफ जाहिर होता है कि कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन को आत्मविश्वास की कमी का सामना करना पड़ रहा है।

महाराष्ट्र की जीत का संघर्ष

महाराष्ट्र की जीत इतनी आसान नहीं थी। चुनौतियां कई थीं। जब से एकनाथ शिंदे और अजीत पवार गुट अपने मूल दलों से अलग हुए, विशेषज्ञों ने सोचा कि जनता उन्हें दंडित करेगी। उद्धव ठाकरे और शरद पवार ने भी इस ‘विश्वासघात’ का मुद्दा उठाकर समर्थन पाने की कोशिश की, लेकिन वे बुरी तरह विफल रहे। महायुति सरकार ने मराठा समुदाय को एकजुट होने से रोक दिया।

मुसलमानों को साधने की कोशिश

अजीत पवार को मुस्लिम वोट हासिल करने के लिए प्रोत्साहित किया गया। यह कदम महा विकास अघाड़ी (एमवीए) के लिए विनाशकारी साबित हुआ। चार महीने पहले शुरू की गई “लड़की बहन योजना” ने महिला मतदाताओं के बीच लोकप्रियता हासिल कर चुनाव का रुख बदल दिया।

महिलाएं हर चुनाव में अपनी ताकत बढ़ा रही हैं। झारखंड में महिलाओं ने हेमंत सोरेन को समर्थन दिया, जिन्होंने “मैय्या सम्मान” योजना के जरिए माताओं को लुभाया।

इन चुनावों ने यह साफ कर दिया है कि सहानुभूति और विरासत के भरोसे जीत पाना आसान नहीं है। ज़मीन पर काम करना जरूरी है।

महाराष्ट्र में बीजेपी ने कोई गलती नहीं की। टिकट वितरण और गठबंधन सहयोगियों के प्रबंधन को गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व में सावधानी और बुद्धिमानी से संभाला गया। नतीजे खुद इसकी गवाही देते हैं। बीजेपी ने 88.6% की स्ट्राइक रेट के साथ, शिंदे की शिवसेना ने 71.3% और अजीत पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस ने 69.5% की स्ट्राइक रेट के साथ शानदार जीत दर्ज की।

झारखंड में हार क्यों?

झारखंड में बीजेपी की हार के कारण अलग थे। महाराष्ट्र के विपरीत, एनडीए समर्थक पार्टियों में कोई भारी भरकम नेता नहीं था। इंडिया गठबंधन में हेमंत सोरेन को चुनौती देने वाला कोई कद्दावर नेता नहीं था। नतीजतन, मतदाताओं और कार्यकर्ताओं में कोई भ्रम नहीं था। चुनाव से कुछ महीने पहले सोरेन की गिरफ्तारी ने ‘विरोधी लहर’ को खत्म कर दिया।

बीजेपी ने महाराष्ट्र जैसी रणनीति झारखंड में भी अपनाने की कोशिश की, लेकिन चंपई सोरेन शिंदे या पवार जैसा कारनामा नहीं दोहरा सके।

कांग्रेस के लिए चेतावनी

इन चुनावों का एक और प्रमुख रुझान यह है कि कांग्रेस हिंदी पट्टी में अकेले जीतने की अपनी क्षमता खोती जा रही है।

झारखंड में हार के बावजूद, यह स्पष्ट है कि बीजेपी आगामी चुनावों की तैयारी नई ऊर्जा के साथ करेगी। एनडीए सहयोगी भी प्रधानमंत्री के साथ अधिक सम्मान से काम करेंगे। इससे मोदी को अपनी योजनाओं को तेजी से लागू करने में मदद मिलेगी।

शिंदे की बात करें तो उन्होंने उद्धव ठाकरे के खिलाफ मजबूती दिखाई है, लेकिन अभी उन्हें बालासाहेब ठाकरे के उत्तराधिकारी के रूप में उभरना बाकी है। अगर वह मुख्यमंत्री का पद बरकरार नहीं रख पाते, तो भविष्य में उन्हें नई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।

विपक्ष के लिए सबक

विपक्ष अपनी हार को यह कहते हुए भुला सकता है कि उसने चार में से दो विधानसभा चुनाव जीते हैं। प्रियंका गांधी वायनाड से अपनी सीट जीत चुकी हैं। क्या वह अपने भाई राहुल गांधी के साथ कांग्रेस में नई जान फूंक पाएंगी? यह स्पष्ट है कि विपक्ष को बड़ा झटका लगा है, लेकिन उनके पास आराम और पुनर्गठन के लिए पर्याप्त समय है।

भारतीय लोकतंत्र की खूबसूरती

यह भारतीय लोकतंत्र की खूबसूरती है कि यहां सभी के लिए जगह है।

Kavita Mishra
Kavita Mishrahttps://hindi.inventiva.co.in/
Kavita is a versatile content writer with a deep passion for news. Based in New Delhi, she has a keen interest in exploring the latest trends in the world of current affairs and delivering engaging content to her audience. Kavita has extensive experience working with Inventiva, where she honed her skills in content creation and developed a strong foundation in delivering high-quality, informative articles.
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