हाल के लेखों में तीन बड़ी तकनीकी क्रांतियों का उल्लेख किया गया है, जो हमारे जीवन को मूल रूप से बदलने वाली हैं: जीवाश्म ईंधन से अक्षय ऊर्जा की ओर संक्रमण, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) की क्रांति और जैव प्रौद्योगिकी की क्रांति।
लेकिन एक चौथी बड़ी चुनौती भी है, जो भारत और दुनिया में हमारे जीवन पर गहरा प्रभाव डालेगी—और वह है वैश्विक जल संकट। खासतौर पर, ताजे पानी की कमी का संकट।
जल संकट की स्थिति
तथ्यों को समझने के लिए कुछ आंकड़े देखें। जल की कोई कमी नहीं है। पृथ्वी की सतह का 70% से अधिक हिस्सा पानी से ढका हुआ है, और दुनिया में पानी का भंडार 1.4 अरब घन किलोमीटर से अधिक है। लेकिन इनमें से केवल 2.5% पानी ताजा है, जिसमें से अधिकांश ध्रुवीय बर्फ और ग्लेशियरों में (69%) तथा भूजल में (30%) है।
सतह पर उपलब्ध ताजे पानी का केवल 1% हिस्सा है, जो झीलों, दलदलों, नदियों और वायुमंडल में जल वाष्प के रूप में पाया जाता है। जलवायु परिवर्तन के कारण ताजे पानी की प्राकृतिक आपूर्ति में वृद्धि की संभावना नहीं है, बल्कि इसके घटने की आशंका है।
बढ़ती खपत और बढ़ता संकट
पिछली सदी में जनसंख्या वृद्धि और कृषि में अधिक पानी के उपयोग के कारण ताजे पानी की खपत में 600% की वृद्धि हुई है। कृषि में 70%, उद्योग में 23% और घरेलू खपत में 7% पानी का उपयोग होता है।
दुनिया के कई हिस्से पहले से ही जल संकट का सामना कर रहे हैं। 2030 तक ताजे पानी की मांग टिकाऊ आपूर्ति से 40% अधिक हो जाएगी।
भारत में जल संकट
भारत में जल संकट वैश्विक स्थिति का एक गहराया हुआ रूप है। पंजाब, हरियाणा और आंध्र प्रदेश के कुछ हिस्सों में भूजल स्तर हजारों फीट तक गिर गया है। कई नदियाँ सिकुड़ गई हैं और कुछ छोटी नदियाँ सूख चुकी हैं। शहरों में जल राशनिंग आम हो गई है, और ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं पानी लाने के लिए लंबी दूरी तय कर रही हैं।
समाधान की दिशा में प्रयास
जल संकट को केवल मांग पक्ष से हल करना संभव नहीं है। ताजे पानी की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए ताजे पानी का उत्पादन बढ़ाना आवश्यक है।
डी-सैलीनेशन तकनीक
डी-सैलीनेशन की कई तकनीकें उपलब्ध हैं। पारंपरिक डिस्टिलेशन विधि में पानी को वाष्पित करके और संक्षेपित करके नमक को अलग किया जाता है। एक आधुनिक संस्करण, मल्टी-स्टेज फ्लैश डिस्टिलेशन, समुद्री जल को तेजी से वाष्पित करता है और ऊर्जा का पुनः उपयोग करता है।
दूसरी प्रमुख तकनीक रिवर्स ऑस्मोसिस (RO) है, जिसमें नमकीन पानी को अर्ध-पारगम्य झिल्ली से गुजारा जाता है, जो नमक को रोकता है और ताजा पानी बाहर निकलता है। घरों में RO सिस्टम का उपयोग आम है।
हालांकि, ये तकनीकें ऊर्जा-गहन हैं। RO, फ्लैश डिस्टिलेशन की तुलना में कम ऊर्जा लेता है और तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। सौर ऊर्जा पर आधारित RO तकनीक इसे कार्बन न्यूट्रल बना सकती है, लेकिन ऊर्जा लागत के कारण यह अभी भी महंगा है।
भारत के लिए अवसर
भारत का 7000 किलोमीटर से अधिक लंबा तट है, जो ताजे पानी के उत्पादन की अपार संभावनाएँ प्रदान करता है। यह क्षमता अभी तक पूरी तरह से उपयोग में नहीं लाई गई है।
सरकार की भूमिका
केंद्र सरकार ने परिवहन, बिजली और संचार जैसे बुनियादी ढांचे में निवेश पर जोर दिया है। अब, तीसरे कार्यकाल में, जल संकट से बचने के लिए डी-सैलीनेशन को निवेश पोर्टफोलियो में जोड़ने का सही समय है।
अगर आज से कदम नहीं उठाए गए, तो अगले 10-20 वर्षों में स्थिति गंभीर हो सकती है।