महाराष्ट्र और झारखंड में महायुति और झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की सफलता ने महिला केंद्रित नकद योजनाओं को राज्य चुनावों में जीत का नया मंत्र साबित किया है। इन योजनाओं के जरिए राजनीतिक दल महिलाओं को साधने का प्रयास कर रहे हैं।
महिलाओं के लिए नकद हस्तांतरण योजनाओं की भरमार
लगभग सभी राजनीतिक दलों ने महिलाओं को सीधे नकद हस्तांतरण के माध्यम से लुभाने की कला में महारत हासिल कर ली है। 2021 में पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने ‘लक्ष्मी भंडार’ योजना शुरू की थी, जिसमें एससी/एसटी समुदाय की महिलाओं को ₹1,200 और अन्य श्रेणियों की महिलाओं को ₹1,000 मासिक भत्ता दिया जा रहा है।
इसके बाद 2023 में मध्य प्रदेश में भाजपा सरकार ने ‘मुख्यमंत्री लाड़ली बहना योजना’ शुरू की, जिसके तहत महिलाओं को ₹1,250 प्रति माह दिए जा रहे हैं। इस योजना की बड़ी सफलता के बाद इसे 2024 में महाराष्ट्र में ‘मुख्यमंत्री माझी लाडकी बहन योजना’ के रूप में दोहराया गया, जिसमें ₹1,500 नकद हस्तांतरण किया गया और चुनाव से पहले वादा किया गया कि महायुति सत्ता में आई तो यह राशि बढ़ाकर ₹2,100 कर दी जाएगी।
ओडिशा में भाजपा सरकार की ‘सुभद्रा योजना’ के तहत महिलाओं को सालाना ₹10,000 दो किस्तों में दिए जाते हैं। इसी तरह झारखंड में झामुमो के नेतृत्व वाली सरकार ने इस साल अगस्त में ‘मुख्यमंत्री मइया सम्मान योजना’ शुरू की, जिसमें महिलाओं को हर महीने ₹1,000 दिए जाते हैं। कर्नाटक में कांग्रेस सरकार की ‘गृह लक्ष्मी योजना’ के तहत महिलाओं को हर महीने ₹2,000 मिलते हैं।
कैसे प्रभावित होता है मतदान पैटर्न
दिसंबर 2023 में एक एसबीआई रिसर्च अध्ययन में पाया गया कि मध्य प्रदेश में लाड़ली बहना योजना से लाभान्वित होने वाली महिलाओं की संख्या में 1% की वृद्धि से पार्टी की जिला स्तर पर सफलता दर में 0.36% की बढ़ोतरी हुई। रिपोर्ट में बताया गया कि हर आठ में से एक विधानसभा सीट पर इस योजना का सकारात्मक असर पड़ा।
महिला लाभार्थियों के खर्च करने की प्रवृत्ति भी अधिक पाई गई। ₹1,000 से ₹2,000 मासिक नकद हस्तांतरण से एकल माताओं, विधवाओं और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों की महिलाओं को सहारा मिला, जिससे यह मतदाता वर्ग सरकार के प्रति वफादार बनता है और मतदान केंद्र पर पार्टी को समर्थन देता है।
महिला मतदाताओं पर फोकस क्यों?
हाल ही में संपन्न महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनावों में महिलाओं की कतारें पुरुषों से लंबी देखी गईं। मई 2024 में एसबीआई रिसर्च की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2024 लोकसभा चुनावों के दौरान महिलाओं के मतदाता संख्या में 93.6 लाख की वृद्धि हुई, जो पुरुष मतदाताओं के 84.7 लाख की वृद्धि से अधिक थी।
रिपोर्ट में कहा गया कि उज्ज्वला योजना, मातृ वंदना योजना और पीएम आवास योजना जैसी महिला केंद्रित योजनाओं का ग्रामीण क्षेत्रों में गहरा असर पड़ा है, जिससे महिलाओं की भागीदारी में वृद्धि हो रही है। 2029 में अगली लोकसभा चुनावों तक महिला मतदाताओं की संख्या पुरुषों से अधिक होने की संभावना है।
आर्थिक बोझ और वित्तीय प्रभाव
एसबीआई की रिपोर्ट के अनुसार, महिलाओं को नकद हस्तांतरण से राज्यों के राजस्व का 3% से 11% खर्च होता है। आठ राज्यों (कर्नाटक, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, गुजरात, दिल्ली और ओडिशा) का कुल खर्च ₹2.11 लाख करोड़ है।
महाराष्ट्र ने अपनी ‘लाडकी बहन’ योजना के लिए ₹46,000 करोड़ (अपने राजस्व का 9%) आवंटित किया है। मध्य प्रदेश में लाड़ली बहना योजना के लिए FY25 में ₹18,984 करोड़ का बजट रखा गया है, जो FY24 के ₹14,716 करोड़ से 29% अधिक है।
पश्चिम बंगाल की ‘लक्ष्मी भंडार’ योजना पर ₹14,400 करोड़ खर्च हो रहे हैं, जो राज्य के कुल राजस्व का 6% है। कर्नाटक की ‘गृह लक्ष्मी योजना’ पर ₹28,608 करोड़ खर्च होते हैं, जो राज्य के राजस्व का 11% है। दिल्ली सरकार ने ‘मुख्यमंत्री महिला सम्मान योजना’ के लिए ₹2,000 करोड़ का बजट रखा है, जिसमें हर महिला को ₹1,000 मासिक दिए जा रहे हैं (आयकरदाता, सरकारी कर्मचारी या पेंशनभोगी महिलाओं को छोड़कर)।
श्रम बाजार पर असर
इन योजनाओं के दीर्घकालिक आर्थिक प्रभाव भी हो सकते हैं। नकद हस्तांतरण के कारण महिलाएं रोजगार आधारित योजनाओं में रुचि नहीं ले रही हैं, जिससे श्रम बाजार में असंतुलन पैदा हो रहा है। महाराष्ट्र में कपास तोड़ने वाली महिलाओं ने खेतों में काम करने से इनकार कर दिया, जिससे मजदूरों की कमी हो गई और किसानों को अधिक मजदूरी देनी पड़ी।