कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने बुधवार को इंफोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति के काम और जीवन के संतुलन (वर्क-लाइफ बैलेंस) पर दिए गए बयान से असहमति जताई। नारायण मूर्ति ने हाल ही में यह बयान दोहराया था कि वे 70 घंटे प्रति सप्ताह काम करने के पक्षधर हैं और वर्क-लाइफ बैलेंस की अवधारणा में विश्वास नहीं करते। गोगोई ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘X’ पर लिखा, “मैं भी श्री नारायण मूर्ति जी के वर्क-लाइफ बैलेंस के विचार से असहमत हूं।”
गोगोई ने आगे कहा, “आखिर जीवन है क्या? बच्चों की देखभाल करना, उनके लिए खाना बनाना, उन्हें पढ़ाना, बुजुर्ग माता-पिता की देखभाल करना, जरूरत के समय दोस्तों के साथ खड़ा रहना और यह सुनिश्चित करना कि घर व्यवस्थित रहे। ये सब काम पुरुषों के लिए भी उतने ही जरूरी हैं, जितने महिलाओं के लिए। परंपरागत रूप से कामकाजी महिलाओं के पास जीवन और काम को अलग करने का विकल्प नहीं होता।” उन्होंने कहा, “यह एक ऐसी सुविधा है जो पारंपरिक रूप से पुरुषों के पास थी, लेकिन आधुनिक दुनिया में उन्हें भी इसे त्यागना होगा।”
नारायण मूर्ति ने क्या कहा?
इंफोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति में वर्क-लाइफ बैलेंस के खिलाफ अपनी राय दोहराई। उन्होंने 70 घंटे प्रति सप्ताह काम करने का समर्थन करते हुए कहा कि भारत जैसे विकासशील देश को चुनौतियों का सामना करने के लिए काम पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। उन्होंने KV कामथ के विचारों का हवाला देते हुए कहा कि भारत में फिलहाल वर्क-लाइफ बैलेंस की बजाय कड़ी मेहनत पर जोर देना जरूरी है।
मूर्ति ने 1986 में छह दिन के कार्य सप्ताह से पांच दिन के कार्य सप्ताह में बदलाव पर भी निराशा जताई। उन्होंने कहा, “सच कहूं तो 1986 में जब हमने छह दिन से पांच दिन के कार्य सप्ताह में बदलाव किया, तब मैं बहुत निराश हुआ था।”
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का उदाहरण देते हुए मूर्ति ने कहा, “जब पीएम मोदी हर सप्ताह 100 घंटे काम कर रहे हैं, तो हमारे पास चारों ओर हो रहे अच्छे कामों के प्रति आभार व्यक्त करने का एकमात्र तरीका है कि हम भी ज्यादा मेहनत करें।” उन्होंने जोर देते हुए कहा, “भारत में मेहनत का कोई विकल्प नहीं है। भले ही आप होशियार हों, आपको कड़ी मेहनत करनी ही होगी। मैं अपने जीवनभर की मेहनत पर गर्व महसूस करता हूं। इसलिए, मुझे खेद है कि मैंने अपना विचार नहीं बदला। मैं यह राय अपनी आखिरी सांस तक लेकर जाऊंगा।”