भारत 8% की दर से विकास कर रहा है, लेकिन इसके बावजूद श्रम बल में महिलाओं की हिस्सेदारी में असंतुलन बना हुआ है। सांख्यिकी मंत्रालय द्वारा 23 सितंबर को जारी वार्षिक आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण डेटा के मनीकंट्रोल विश्लेषण के अनुसार, 2023-24 (जुलाई-जून) में महिला श्रम बल भागीदारी दर 41.7% के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई। हालांकि, इसी अवधि में बेरोजगारी दर 2.9% से बढ़कर 3.2% हो गई।
यह वृद्धि मुख्य रूप से ग्रामीण अर्थव्यवस्था से आई है, जहां बेरोजगारी दर पिछले वर्ष के 1.8% से बढ़कर 2% से अधिक हो गई।
हालांकि, यदि शहरी क्षेत्रों पर नज़र डालें, तो यह पाया गया कि महिलाओं की बेरोजगारी पुरुषों की तुलना में तेजी से घटी, लेकिन नौकरियों की गुणवत्ता में गिरावट आई।
नौकरियों की गुणवत्ता में गिरावट
नियमित वेतन/वेतनभोगी नौकरियों में महिलाओं की संख्या 49.4% पर पहुंच गई, जो पिछले सात वर्षों का सबसे निचला स्तर है, जबकि पिछले वर्ष यह आंकड़ा 50.8% था। यह पहली बार है जब 50% से कम महिलाएं नियमित वेतन/वेतनभोगी नौकरियों में कार्यरत हैं।
यह गिरावट महिलाओं के स्वरोजगार वर्ग में वृद्धि के साथ मेल खाती है। हालांकि पुरुषों ने भी वेतनभोगी कार्यों से स्वरोजगार की ओर रुख किया, लेकिन यह गिरावट महिलाओं की तुलना में काफी कम थी।
कम वेतन
आय स्तर पर नज़र डालने पर यह स्पष्ट होता है कि महिलाएं वेतनभोगी कार्य छोड़ने के बाद पुरुषों की तुलना में अधिक नुकसान में रहीं।
जहां शहरी क्षेत्रों में वेतनभोगी पुरुषों की औसत मासिक आय स्वरोजगार पुरुषों की तुलना में सिर्फ 11% अधिक थी, वहीं महिलाओं के मामले में यह अंतर 132% तक था। वेतनभोगी महिलाओं की औसत आय ₹19,709 थी, जो कि स्वरोजगार महिलाओं की मासिक आय की तुलना में दोगुनी थी।
सभी वेतनभोगी कार्य समान नहीं होते।
2023-24 में बिना लिखित अनुबंध वाली वेतनभोगी महिलाओं का प्रतिशत बढ़कर 59% हो गया, जबकि पिछले वर्ष यह आंकड़ा 57.6% था। बिना भुगतान छुट्टी वाली महिलाओं का प्रतिशत 44.6% से बढ़कर 45.2% हो गया, और बिना सामाजिक सुरक्षा लाभों वाली महिलाओं का प्रतिशत 53.6% से बढ़कर 55.7% हो गया।
इसके विपरीत, पुरुषों की स्थिति में सुधार देखा गया, क्योंकि बिना अनुबंध और बिना सामाजिक सुरक्षा वाले कार्यों में पुरुषों की संख्या घटी है।
आंकड़ों से यह साफ है कि महिलाओं की श्रमशक्ति भागीदारी बढ़ी जरूर है, लेकिन यह कोई उत्सव का समय नहीं है। जिस दर से वेतनभोगी महिलाओं की संख्या घटी है और स्वरोजगार में जाने से उनकी आय पर गहरी मार पड़ी है, वह सरकार के श्रम सुधारों पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न लगाती है। आखिर ऐसा कब तक चलेगा कि महिलाएं अधिक काम करें, लेकिन बदले में कम वेतन, खराब नौकरी की शर्तें और कोई सुरक्षा नहीं पाएँ?