वस्तु एवं सेवा कर (GST) का ढांचा जल्द ही नए टैक्स स्लैब के साथ बदल सकता है। जीएसटी काउंसिल की दरों के पुनर्गठन पर काम कर रही मंत्रियों की समिति 28 प्रतिशत टैक्स वाली वस्तुओं जैसे सिगरेट और शीतल पेयों पर 35 प्रतिशत का नया स्लैब लागू करने का प्रस्ताव पेश कर सकती है।
जीएसटी का मौजूदा ढांचा
फिलहाल, जीएसटी के तहत वस्तुओं को सात श्रेणियों में बांटा गया है:
- शून्य कर वाली वस्तुएं (जैसे दूध)
- 0.25%, 3%, 5%, 12%, 18% और 28% टैक्स वाले स्लैब
28 प्रतिशत टैक्स वाले कुछ उत्पादों पर उपकर (cess) भी लगाया जाता है, जिससे प्रभावी कर दर और अधिक हो जाती है। इस नए स्लैब का जुड़ना ढांचे को और जटिल बना सकता है, जबकि शुरुआती लक्ष्य कम स्लैब के साथ एक समान कर ढांचे की ओर बढ़ना था।
औसत दरों में गिरावट के बावजूद दबाव
जीएसटी काउंसिल ने 2017 में लागू होने के बाद से औसत दरों में कमी लाने की कोशिश की है। हालांकि, आर्थिक झटकों के कारण सरकार को वित्तीय दबाव झेलना पड़ा है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में जानकारी दी कि 2023-24 के लिए भारित औसत दर 11.64 प्रतिशत है, जो 2017 में 14.4 प्रतिशत थी।
असंतुलित ढांचा
औसत दर में कमी का एक बड़ा कारण यह है कि कई वस्तुओं को कम टैक्स स्लैब में डाला गया है। एक सर्वेक्षण के अनुसार, मासिक प्रति व्यक्ति खर्च का 57.6% हिस्सा 5% या उससे कम के स्लैब में आता है। लगभग 25% खर्च जीएसटी से मुक्त है, जबकि 14.5% वस्तुएं जीएसटी के दायरे में नहीं हैं।
इस असंतुलन का नतीजा यह है कि 2023-24 में औसत जीएसटी दर 11.64% होने के बावजूद, कुल राजस्व का 70-75% हिस्सा 18% के स्लैब से आता है। इसलिए, पर्याप्त राजस्व जुटाने के लिए काउंसिल के पास 28% से ऊपर एक नया स्लैब जोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।
राजनीतिक-आर्थिक हकीकत
2015 में अरविंद सुब्रमण्यन की अध्यक्षता वाली समिति ने 15-15.5% के राजस्व तटस्थ दर (RNR) की सिफारिश की थी। हालांकि, समिति ने भी भविष्य में एकल दर की उम्मीद जताई थी। लेकिन, हकीकत में हम विपरीत दिशा में बढ़ रहे हैं।
जीएसटी काउंसिल, जिसमें सभी प्रमुख राजनीतिक दल शामिल हैं, सहमति से फैसले लेती है, जिससे जटिलताएं बढ़ती हैं। विशेषज्ञों की आलोचना के बावजूद, यह भारत की राजनीतिक-आर्थिक हकीकत को दर्शाता है।