भारत में खुदरा महंगाई दर अक्टूबर 2024 में 14 महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है। ऐसे में बढ़ती कीमतों के भविष्य के लिए अभी से तैयारी करना बेहद जरूरी हो गया है। अपने लंबी अवधि के खर्चों को सही तरीके से आंकने और बजट बनाने से महंगाई के प्रभावों से बचा जा सकता है।
क्या है खुदरा महंगाई?
खुदरा महंगाई का अर्थ है, अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में धीरे-धीरे वृद्धि होना। समय के साथ पैसे की कीमत घटने से यह स्थिति उत्पन्न होती है। इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं, जैसे मुद्रा का अधिक प्रचलन, खाद्य पदार्थों और पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में वृद्धि आदि।
महंगाई दर में बढ़ोतरी
अक्टूबर 2024 में महंगाई दर 6.21% दर्ज की गई, जो भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के सहनशीलता स्तर से 21 आधार अंक अधिक है। RBI का महंगाई लक्ष्य 4% है, जिसमें 2% का ऊपर-नीचे का मार्जिन रखा गया है।
खर्चों का अनुमान:
आइए, एक काल्पनिक परिवार की उदाहरण से समझते हैं, जिसकी मासिक खर्च ₹1 लाख है। नीचे दिए गए आंकड़े बताते हैं कि 7% वार्षिक महंगाई दर के आधार पर अगले 10, 20 और 30 वर्षों में उन्हें कितना बजट तैयार करना होगा:
समय अवधि | महंगाई के अनुसार समायोजित राशि |
---|---|
10 वर्ष | ₹1.97 लाख |
20 वर्ष | ₹3.87 लाख |
30 वर्ष | ₹7.61 लाख |
क्यों जरूरी है बजट प्लानिंग?
इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि अगले 10 वर्षों में वर्तमान ₹1 लाख के खर्चों को सुरक्षित रूप से बनाए रखने के लिए लगभग दोगुना बजट तैयार करना होगा। हालांकि, यह 7% महंगाई दर केवल एक अनुमानित स्थिति है और यह वास्तविक परिस्थितियों में अलग हो सकती है।
एक व्यावहारिक उदाहरण:
CRISIL की ‘रोटी राइस रेट’ (RRR) रिपोर्ट के अनुसार, अक्टूबर 2024 में घर में बनी एक शाकाहारी थाली की लागत अक्टूबर 2023 की तुलना में 20% अधिक हो गई, जबकि एक गैर-शाकाहारी थाली की लागत 5% बढ़ी।
निष्कर्ष
बढ़ती महंगाई के बीच, अपने खर्चों को समझदारी से आंकना और सही बजट बनाना बेहद जरूरी हो गया है। यह न केवल वर्तमान बल्कि भविष्य के लिए भी आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद करेगा।