इंडिगो, जो बाज़ार हिस्सेदारी के मामले में भारत की सबसे बड़ी एयरलाइन है, नवंबर से दिल्ली-मुंबई मार्ग पर पहली बार बिज़नेस क्लास सीटें पेश करने की योजना बना रही है। इस साल के अंत तक इस मार्ग पर सभी उड़ानों में प्रीमियम श्रेणी को शामिल करने की तैयारी की जा रही है।
इंडिगो के सीईओ पीटर एल्बर्स ने एक इंटरव्यू में बताया कि बिज़नेस क्लास की यह सुविधा अगले चरण में बेंगलुरु और हैदराबाद जैसे अन्य शहरों की उड़ानों में भी शुरू की जाएगी। एयरलाइन का लक्ष्य 2025 के अंत तक 40 विमानों को बिज़नेस क्लास से लैस करना है। उनका मानना है कि इस नई श्रेणी के जुड़ने से एयरलाइन की आय में ‘काफी वृद्धि’ होगी।
पीटर एल्बर्स के अनुसार, एयरलाइन ने उन विशेष मार्गों को चिन्हित किया है जहाँ ये बिज़नेस क्लास सीटें पेश की जाएंगी।
बिज़नेस क्लास यात्रियों के लिए ‘सबसे बाद में बोर्डिंग और सबसे पहले बाहर निकलने’ की सुविधा और हवाई अड्डे पर आसान ट्रांसफर जैसी सुविधाओं को अनिवार्य माना जा रहा है। एल्बर्स का कहना है कि घरेलू लाउंज की योजना नहीं है क्योंकि यात्री के पास बोर्डिंग से पहले मुश्किल से ही समय होता है।
हालांकि, इंडिगो अपनी सरल सेवाओं के लिए जानी जाती रही है ताकि लागत नियंत्रण में रहे। फिर भी, एयरलाइन यह विश्वास दिला रही है कि प्रीमियम क्लास की तैयारी के बावजूद वह अपनी लागत प्रभावशीलता बनाए रखेगी। सीईओ एल्बर्स ने कहा, “हमने उन महत्वपूर्ण पहलुओं की पहचान की है जो हमारे ग्राहकों के लिए सबसे ज़्यादा मायने रखते हैं और हम उन पर खर्च करने के लिए तैयार हैं।”
एल्बर्स ने भारत को ‘दुनिया के सबसे तेज़ी से बदलते देशों’ में से एक बताया और यहां एविएशन उद्योग की बढ़ती प्रतिस्पर्धा के बावजूद व्यापार की संभावनाओं पर सकारात्मक रुख दिखाया। उनका कहना है कि एविएशन में समेकन (कंसॉलिडेशन) एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, जो अमेरिका और अन्य देशों में भी देखी गई है। उन्होंने भारत की जीडीपी वृद्धि, एविएशन इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास और घरेलू खपत में वृद्धि को उद्योग के विकास के प्रमुख कारक बताया, जो घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों स्तरों पर प्रभाव डालेगा।
इंडिगो अपने बेड़े के विस्तार की महत्वाकांक्षी योजना पर भी काम कर रही है, जिसमें अगले दशक तक हर सप्ताह एक नया विमान शामिल करने की योजना है। एल्बर्स ने कहा कि अगर भारत की एयरलाइंस को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करनी है, तो उन्हें इतने बड़े पैमाने पर ऑपरेटर बनने की जरूरत है। उन्होंने यह भी बताया कि दुनिया की 65 प्रतिशत जनसंख्या भारत से 5-6 घंटे की उड़ान सीमा में रहती है, जिससे अंतरराष्ट्रीय संचालन की अपार संभावनाएं हैं।