भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र पर अपनी निगरानी को बढ़ाते हुए हाल ही में 9,000 सोशल मीडिया पोस्ट को अवैध या भ्रामक घोषित किया है। इससे पहले, सेबी ने डेटा को इंटरसेप्ट और डिक्रिप्ट करने की शक्तियों की मांग की थी। अक्टूबर में, सेबी ने एक परामर्श पत्र जारी किया, जिसमें ‘फिनफ्लुएंसर’ पर नियंत्रण और डिजिटल प्लेटफॉर्म के नीतिगत ढांचे को विनियमित करने के अपने इरादे को दर्शाया गया। साथ ही, सेबी अपने अर्ध-न्यायिक अधिकार क्षेत्र का विस्तार करने का प्रयास कर रहा है, जिसे केवल संसद द्वारा सेबी अधिनियम में संशोधन करके किया जा सकता है।
फिनफ्लुएंसर पर सेबी का प्रस्ताव
जून 2024 में, सेबी ने ‘फिनफ्लुएंसर’ पर चिंता व्यक्त की थी, जो निवेशकों को वित्तीय उत्पादों, सेवाओं, या प्रतिभूतियों को खरीदने के लिए प्रेरित करते हैं, बदले में निर्माता या प्लेटफॉर्म से अघोषित मुआवजा प्राप्त करते हैं। अगस्त 2024 में, सेबी ने तीन नियमों में संशोधन किया, जिसके तहत सेबी पंजीकृत संस्थाओं और ‘फिनफ्लुएंसर’ के बीच किसी भी सहयोग को प्रतिबंधित कर दिया गया, जब तक कि यह सहयोग “निर्दिष्ट डिजिटल प्लेटफॉर्म” (SDP) के माध्यम से न हो।
22 अक्टूबर को, सेबी ने एक परामर्श पत्र के साथ मसौदा सर्कुलर जारी किया। इसमें डिजिटल प्लेटफॉर्म के लिए कई अनुपालन उपायों का प्रस्ताव रखा गया, जैसे कि उपयोगकर्ताओं के खिलाफ कार्रवाई की नीति लागू करना, जिसमें उपयोगकर्ताओं या संस्थाओं को ब्लैकलिस्ट करना और शिकायत निवारण तंत्र शामिल हैं। यदि कोई डिजिटल प्लेटफॉर्म इन उपायों को लागू करने में विफल रहता है, तो वह एसडीपी के रूप में मान्यता प्राप्त नहीं करेगा। परिणामस्वरूप, सेबी पंजीकृत संस्थाएं ऐसे प्लेटफॉर्म से सहयोग नहीं कर पाएंगी।
सेबी का अधिकार क्षेत्र और प्रस्ताव की वैधता
सेबी ने अपने प्रस्ताव के लिए सेबी अधिनियम की धारा 11(1) का हवाला दिया है, जो उसे प्रतिभूति बाजार को नियंत्रित करने के लिए व्यापक अधिकार प्रदान करती है। हालांकि, यह प्रस्ताव अन्य मंत्रालयों द्वारा पहले से मौजूद सोशल मीडिया और ‘फिनफ्लुएंसर’ नियमों के साथ टकराव का कारण बन सकता है। यह सर्कुलर सेबी के अधिकार क्षेत्र के भीतर और बाहर दोनों तरह की संस्थाओं को नियंत्रित करने की कोशिश करता है।
सर्कुलर: क्या यह उचित साधन है?
उच्चतम न्यायालय के अनुसार, सर्कुलर केवल प्रशासनिक दिशा-निर्देश देने के लिए होना चाहिए, न कि कानून बनाने के लिए। यदि सेबी को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर नियंत्रण लागू करना था, तो इसे सेबी अधिनियम की धारा 30 के तहत नियमन जारी करना चाहिए था, जिसे संसद की स्वीकृति प्राप्त होती।
इसके अलावा, सेबी ने अपने अधिकार क्षेत्र को भी बढ़ाने की कोशिश की है। यदि किसी प्लेटफॉर्म और सेबी पंजीकृत संस्था के बीच विवाद होता है, तो सेबी का निर्णय अंतिम माना जाएगा। यह सेबी अधिनियम में निर्दिष्ट नहीं है।
निष्कर्ष
सेबी ने एक नई कानूनी व्यवस्था बनाने का प्रयास किया है, जिसे छद्म कानून कहा जा सकता है। सेबी जैसी नियामक प्राधिकरण पारदर्शिता और कानून के शासन का पालन करने के लिए बाध्य हैं। इस प्रस्ताव के जरिए सेबी पर सवाल उठ रहे हैं कि क्या वह अपनी शक्तियों का दुरुपयोग कर रहा है और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को दरकिनार कर रहा है।