सूचना प्रौद्योगिकी कर्मचारियों की नई संगठन (NITES) ने कर्नाटक राज्य श्रम विभाग पर पक्षपात का आरोप लगाया है। यह आरोप 2,000 से अधिक छात्रों की भर्ती में देरी को लेकर लगाए गए हैं, जिन्हें इंफोसिस द्वारा नौकरी का ऑफर मिला था, लेकिन अभी तक जॉइनिंग डेट नहीं मिली है।
केंद्र सरकार को लिखे पत्र में NITES ने कर्नाटक सरकार पर झूठे बहाने बनाने का आरोप लगाते हुए कहा कि राज्य सरकार ने मामले पर ‘सूचना के अभाव’ का गलत दावा किया है।
केंद्र को भेजे गए पत्र में कहा गया, “कर्नाटक राज्य श्रम मंत्रालय को भेजे गए पीडीएफ दस्तावेज़ में उन कई स्नातकों के मामलों को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत किया गया है, जिन्हें इंफोसिस द्वारा रोजगार की पेशकश के बावजूद अभी तक जॉइनिंग डेट नहीं मिली है। विस्तृत साक्ष्यों के बावजूद, श्रम मंत्रालय ने इन स्नातकों की चिंताओं को पारदर्शी और प्रभावी ढंग से संबोधित करने में विफलता दिखाई है।”
सितंबर माह में केंद्रीय श्रम मंत्रालय ने कर्नाटक श्रम विभाग को इस मामले की जांच करने का निर्देश दिया, जब NITES ने जून में इस संबंध में शिकायत की थी कि बेंगलुरु स्थित आईटी दिग्गज इंफोसिस ‘नौजवान आईटी स्नातकों का शोषण’ कर रही है।
इंफोसिस की ओर से श्रम मंत्रालय को दिए गए जवाब में यूनियन के आरोपों को ‘पूरी तरह से झूठा’ बताया गया और कहा गया कि सभी स्नातकों को जॉइनिंग डेट्स पहले ही दे दी गई हैं।
इंफोसिस पर आरोप: जानबूझकर भर्ती प्रक्रिया में देरी की गई? पुणे स्थित आईटी यूनियन NITES ने यह भी दावा किया कि कर्नाटक श्रम विभाग ने जानबूझकर तथ्यों को गलत तरीके से प्रस्तुत किया है और निष्पक्ष रूप से कार्रवाई करने में विफल रहा है। उनका आरोप है कि ऐसा इसलिए किया गया ताकि इंफोसिस को किसी भी जिम्मेदारी से बचाया जा सके।
पत्र में उन्होंने यह भी जोड़ा, “हमने केंद्रीय श्रम और रोजगार मंत्रालय से फिर से हस्तक्षेप करने और मामले की निष्पक्ष जांच कराने का आग्रह किया है, ताकि न्याय हो सके और बाकी बचे स्नातकों को उनके अधिकार की जॉइनिंग डेट मिल सके।”
केंद्र के निर्देश के बाद, इंफोसिस ने करीब एक महीने पहले लगभग 2,000 ऑफर लेटर्स जारी किए, जिसमें अक्टूबर 2024 में जॉइनिंग डेट की पुष्टि की गई। हालांकि, बाकी 500 छात्रों को अभी भी कोई पुष्टि नहीं मिली है, जैसा कि पिछले महीने DH की रिपोर्ट में बताया गया था।
यह मुद्दा 2022 से चला आ रहा है, जब छात्रों को नौकरी का वादा किया गया था, लेकिन जॉइनिंग डेट नहीं मिली। इसके लिए उन्होंने NITES से संपर्क किया था।
रिपोर्टों के अनुसार, सिर्फ जॉइनिंग में देरी ही नहीं, बल्कि इंफोसिस ने कई उम्मीदवारों को जुलाई में चार सप्ताह और अगस्त में छह सप्ताह के लिए बिना वेतन के प्री-ट्रेनिंग सेशन और अस्सेस्मेंट्स में भी भाग लेने को कहा।
सवाल यह उठता है कि आखिर किस वजह से कर्नाटक सरकार इंफोसिस के सामने इतनी लाचार नज़र आ रही है? क्या ये छात्रों की मेहनत और अधिकारों के साथ हो रहा खेल नहीं है? इंफोसिस जैसी बड़ी कंपनी के लिए 500 और छात्रों को जॉइनिंग देना क्या इतना मुश्किल काम है या फिर सरकार और कंपनी दोनों मिलकर अपने दायित्वों से बचने की कोशिश कर रहे हैं? शायद इन छात्रों को जवाबदेही का इंतजार और लंबा हो सकता है, क्योंकि सरकार और कंपनी दोनों ही इस मामले में अपनी भूमिका से मुंह मोड़ते नजर आ रहे हैं।