बढ़ती महंगाई और गिरती आर्थिक विकास दर के मिले-जुले संकेतों के बीच भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति 6 दिसंबर को ब्याज दरों के भविष्य पर फैसला करेगी।
वर्तमान परिस्थितियाँ दरों में कटौती की तुलना में बढ़ोतरी के पक्ष में अधिक हैं। आर्थिक संकट के दौरान केंद्रीय बैंकों में नीतिगत समन्वय भी देखा गया है।
हालांकि विशेषज्ञ इस बैठक में दरों को यथास्थिति में रखने और फरवरी 2025 में कटौती की संभावना जता रहे हैं, लेकिन एक विश्लेषण में यह सामने आया है कि RBI ने अमेरिकी फेडरल रिज़र्व के साथ कदमताल करते हुए आमतौर पर एक या दो बैठकों के भीतर फैसले लिए हैं।
उदाहरण के लिए, जब वैश्विक अर्थव्यवस्था महामारी के बाद उबर रही थी और महंगाई एक बड़ी चुनौती बनी हुई थी, तब 2022 में फेडरल रिज़र्व द्वारा दरें बढ़ाने के बाद RBI ने भी मई 2022 में दरें बढ़ाईं। इसके बाद भी भारतीय रिज़र्व बैंक ने फेड के कदमों का अनुसरण करते हुए कई बार दरों में बढ़ोतरी की।
महामारी से पहले के समय में भी RBI ने दरों में कटौती की, हालांकि धीमी गति से। मार्च 2020 में कोविड-19 लॉकडाउन शुरू होते ही फेड ने अपनी नीतिगत दर में 1 प्रतिशत की कटौती की, जबकि RBI ने दो चरणों में दरें घटाईं। मार्च 2020 में नीति दर 4.4 प्रतिशत की गई और फिर मई 2020 में इसे घटाकर 4 प्रतिशत किया गया।
तालमेल या अलग राह?
हालांकि, एक दीर्घकालिक विश्लेषण से पता चलता है कि दोनों केंद्रीय बैंक अक्सर एक साथ नहीं चलते। पिछले दो दशकों में हुई 114 मौद्रिक नीति बैठकों में से केवल 16 बार ही RBI ने फेड के साथ कदम मिलाया है।
सितंबर में फेडरल रिज़र्व ने पहली बार दरों में 50 बेसिस पॉइंट की कटौती की थी।
दूसरी तिमाही के आंकड़े आने से पहले हुए एक सर्वेक्षण में फरवरी की बैठक में दरों में कटौती की संभावना जताई गई थी।
अगर मौद्रिक नीति समिति (MPC) दरों को स्थिर रखने का फैसला करती है, तो यह लगातार दूसरी बैठक होगी जब फेडरल रिज़र्व की दर कटौती के बाद भी RBI ने दरों में बदलाव नहीं किया होगा।