अनिल अंबानी की रिलायंस पावर लिमिटेड और उसकी सहायक कंपनियों पर सोलर एनर्जी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (SECI) ने फर्जी बैंक गारंटी जमा करने के आरोप में आगामी तीन वर्षों तक निविदाओं में भाग लेने पर प्रतिबंध लगा दिया है।
SECI ने गुरुवार को अपने एक बयान में बताया कि यह कार्रवाई फर्जी बैंक गारंटी के कारण की गई है, जिसे पिछले निविदा दौर में रिलायंस पावर की सहायक कंपनी द्वारा प्रस्तुत किया गया था।
रिलायंस पावर की सहायक कंपनी रिलायंस एनयू बीईएसएस लिमिटेड, जिसे पहले महाराष्ट्र एनर्जी जनरेशन लिमिटेड के नाम से जाना जाता था, ने जो दस्तावेज़ प्रस्तुत किए, उनमें पाया गया कि earnest money deposit (ईएमडी) के खिलाफ बैंक गारंटी की पुष्टि फर्जी थी। SECI के अनुसार, इस सहायक कंपनी ने अपनी वित्तीय योग्यता की शर्तों को पूरा करने के लिए अपनी मूल कंपनी की वित्तीय शक्ति का सहारा लिया था।
भारत सरकार के इस उपक्रम ने निष्कर्ष निकाला कि रिलायंस पावर के सभी वाणिज्यिक और रणनीतिक निर्णय उसकी मूल कंपनी द्वारा संचालित हो रहे थे। इसलिए, SECI के लिए यह आवश्यक हो गया कि वह रिलायंस पावर को भविष्य की निविदाओं में भाग लेने से रोक दे।
अब तक की कहानी
जून में SECI ने 1 गीगावाट सौर ऊर्जा और 2 गीगावाट स्टैंडअलोन बैटरी एनर्जी स्टोरेज सिस्टम के लिए निविदा प्रक्रिया में बोली आमंत्रित की थी। हालांकि, बोली प्रक्रिया को उस समय रद्द करना पड़ा, जब रिलायंस एनयू बीईएसएस लिमिटेड द्वारा प्रस्तुत बोली में गंभीर विसंगतियां पाई गईं। जांच में पता चला कि रिलायंस पावर की इस सहायक कंपनी ने एक विदेशी बैंक गारंटी प्रस्तुत की थी और इसके समर्थन में भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) से एक ईमेल का हवाला दिया था। SECI की जांच में पाया गया कि एसबीआई ने ऐसा कोई समर्थन नहीं दिया था और यह ईमेल एक फर्जी ईमेल पते से भेजा गया था।
बताया जा रहा है कि रिलायंस एनयू बीईएसएस ने इस फर्जी बैंक गारंटी के लिए एक तीसरे पक्ष को दोषी ठहराया, लेकिन SECI की पूरी जांच में कहीं भी इस तीसरे पक्ष का जिक्र नहीं किया गया है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या यह एक चूक थी या जानबूझकर की गई एक चाल?
यह मामला सामने आने के बाद SECI ने न केवल बोली प्रक्रिया को रद्द कर दिया, बल्कि रिलायंस एनयू बीईएसएस और रिलायंस पावर के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्णय लिया।
अंबानी समूह पर अन्य चुनौतियाँ
यह मामला अंबानी समूह के सामने आने वाली कई समस्याओं में से एक है। अगस्त में, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने अनिल अंबानी को प्रतिभूति बाजार से पांच साल के लिए प्रतिबंधित कर दिया था और उन पर ₹25 करोड़ का जुर्माना भी लगाया था। हालांकि, बाद में प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण ने SEBI को इस जुर्माने की वसूली से रोक दिया, लेकिन प्रतिभूति बाजार से प्रतिबंध जारी है। यह मामला रिलायंस होम फाइनेंस, जो रिलायंस कैपिटल की सहायक कंपनी है, द्वारा जारी जनरल पर्पस लोन से जुड़ा हुआ था।
2016 में, अनिल अंबानी के समूह ने स्ट्रेस्ड पिपावाव शिपयार्ड में भारी निवेश किया था, जिसे बाद में रिलायंस नेवल एंड इंजीनियरिंग के रूप में पुनःनामित किया गया। लेकिन समूह इसे पुनर्जीवित करने में असफल रहा और अंततः इस शिपयार्ड को दिवालियापन एवं शोधन अक्षमता संहिता (IBC) के तहत बेच दिया गया।
इसके अलावा, रिलायंस कम्युनिकेशंस और रिलायंस कैपिटल की दिवालिया होने की घटनाओं ने समूह की वित्तीय स्थिति पर और भी गहरा असर डाला है।