आज की डिजिटल दुनिया में महिलाओं की इंटरनेट तक पहुँच केवल कनेक्टिविटी बढ़ाने का जरिया नहीं है, बल्कि यह महिला-नेतृत्व विकास, लैंगिक समानता की ओर एक कदम और उनके जीवन को बदलने की कुंजी है।
इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (IAMAI) की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, डिजिटल साक्षरता और कनेक्टिविटी बढ़ाने से 2025 तक भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में $100 बिलियन तक का इज़ाफा हो सकता है, जिसमें महिलाओं को अपेक्षाकृत अधिक लाभ होगा।
डिजिटल प्लेटफॉर्म और इलेक्ट्रॉनिक भुगतान महिलाओं के लिए कौशल प्रशिक्षण, रोजगार तक पहुँच और अतिरिक्त आय के नए अवसर प्रदान करते हैं, जिससे उनके जीवन स्तर में सुधार होता है। हालांकि, भारत की केवल 33% महिलाएं ही इंटरनेट का इस्तेमाल करती हैं, जबकि पुरुषों में यह आंकड़ा 57% है।
राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (NSS) के 78वें दौर (2020-21) ने दिखाया कि ग्रामीण भारत में 49% पुरुषों के पास स्मार्टफोन थे, जबकि महिलाओं में यह आंकड़ा सिर्फ 26% था।
एक अध्ययन के अनुसार, डिजिटल दुनिया में महिलाओं की अनुपस्थिति के कारण 32 देशों, जिनमें भारत भी शामिल है, के GDP में $1 ट्रिलियन की कमी हुई है।
डिजिटल लैंगिक अंतर न केवल आर्थिक क्षमता में कमी का कारण बनता है, बल्कि महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए बनाई गई योजनाओं के वितरण में भी बाधा डालता है।
महिलाओं के डिजिटल उपयोग के सामाजिक पहलू
पाली, राजस्थान के गांवों में किए गए अध्ययन से यह पता चला कि घरों में महिलाओं के लिए साझा डिवाइस उपलब्ध थे, लेकिन इन डिवाइसों तक उनकी पहुँच सीमित थी और उनके ऑनलाइन व्यवहार पर पुरुष सदस्यों द्वारा निगरानी रखी जाती थी।
पुरुष सदस्य इंटरनेट का उपयोग करना जानते थे और ऑनलाइन समाचार पढ़ने और सामग्री देखने में समय बिताते थे। वहीं, मोबाइल फोन को महिलाओं की प्रतिष्ठा के लिए खतरा और शादी के बाद उनकी देखभाल की जिम्मेदारियों में बाधा के रूप में देखा जाता है।
इसी तरह, उत्तराखंड में काम करने वाले संगठनों ने पाया कि राज्य सरकार की योजना के तहत वितरित उपकरणों पर पुरुष छात्रों को बिना रोक-टोक पहुँच मिली, जबकि महिला छात्रों को एक दिन में मुश्किल से एक घंटे का समय मिलता था।
महिलाओं की डिजिटल एजेंसी पर ध्यान देने की आवश्यकता
डिजिटल समावेशन केवल डिवाइस की उपलब्धता तक सीमित नहीं है। यह डिजिटल पहुँच, एजेंसी और साक्षरता का संयोजन है। महिलाओं की डिजिटल भागीदारी बढ़ाने के लिए घर और समुदायों के भीतर डिजिटल एजेंसी बढ़ाने की जरूरत है।
USAID की Gender Digital Divide Risk Mitigation Toolkit बताती है कि डिजिटल तकनीकों के संभावित खतरों और फायदों पर बातचीत करते हुए परिवार और समुदाय के प्रमुख लोगों को डिजिटल साक्षरता अभियानों में शामिल करना चाहिए।
प्रोजेक्ट संपर्क (2014) के तहत टेलीनॉर द्वारा शुरू की गई दो-सिम योजना, जिसमें एक महिला और एक पुरुष सदस्य के लिए सिम थी, ने पहली बार महिलाओं के मोबाइल उपयोग में 33% की बढ़ोतरी की।
राजस्थान में कंप्यूटर सखी और पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और ओडिशा में डिजिटल सखी जैसे कार्यक्रम डिजिटल कौशल सिखाने के लिए आत्म-सहायता समूहों को केंद्र के रूप में उपयोग कर सकते हैं।
स्कूल और सामुदायिक पहल
स्कूल पाठ्यक्रम में डिजिटल कौशल, साइबर सुरक्षा और ऑनलाइन टूल्स का समावेश लड़कियों को आत्मविश्वास के साथ डिजिटल दुनिया का उपयोग करने में सक्षम बनाएगा।
Be Internet Awesome, YLAC Digital Champions Program और Digital Nagrik Program जैसे प्रयास भी इस दिशा में महत्वपूर्ण हैं।
निष्कर्ष
डिजिटल पहुँच का विस्तार करते समय तकनीकी उपयोग के इर्द-गिर्द बने असमान सामाजिक मानदंडों को बदलने के लिए प्रणालीगत हस्तक्षेप करना जरूरी है। यह भारतीय महिलाओं को डिजिटल इंडिया की सफलता में समान और सशक्त भागीदार बनाने के लिए अत्यंत आवश्यक है।