भारत में महिला श्रम भागीदारी, जो पहले से ही निम्न स्तर पर थी, कोविड-19 महामारी के बाद से और भी घट गई है। महामारी को आए दो वर्ष से अधिक हो चुके हैं, लेकिन महिला श्रम भागीदारी का प्रतिशत अभी भी निचले स्तर पर बना हुआ है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, महिला श्रम भागीदारी दर 2016 से ही निम्न बनी हुई है।
सीएमआईई ने बताया कि सितंबर से दिसंबर 2021 के बीच महिला श्रम भागीदारी दर मात्र 9.4% थी। रिपोर्ट में यह भी देखा गया कि अधिकांश शहरी भारतीय महिलाएं श्रम क्षेत्र का हिस्सा नहीं हैं।
हाल में बैन एंड कंपनी और मैजिक बस इंडिया फाउंडेशन की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत के 2047 तक 30 ट्रिलियन डॉलर की जीडीपी लक्ष्य पर 145 मिलियन महिलाओं की श्रम भागीदारी में कमी के कारण बड़ा खतरा मंडरा रहा है। हालांकि, 110 मिलियन महिलाओं को श्रम क्षेत्र में शामिल करने का अनुमान लगाया गया है, जिससे महिला श्रम बल भागीदारी दर 45% तक पहुँच सकती है, लेकिन इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आवश्यक श्रम बल लगभग 400 मिलियन के करीब होना चाहिए।
महिला श्रम बल की आर्थिक क्षमता
रिपोर्ट के अनुसार, $30 ट्रिलियन जीडीपी लक्ष्य प्राप्त करने के लिए, महिलाओं को आर्थिक विकास का लगभग 45% योगदान करना होगा, जो $14 ट्रिलियन की आर्थिक वृद्धि जोड़ सकता है। इसके लिए महिलाओं की श्रम भागीदारी दर में 2047 तक 70% तक की वृद्धि जरूरी है। महिला श्रम भागीदारी के बिना, आर्थिक लक्ष्य पूरा होना चुनौतीपूर्ण होगा। लेकिन सवाल उठता है कि जब सरकारी नीतियों का प्रचार हो चुका है, तो उनकी ज़मीनी हकीकत क्यों नहीं बदल रही?
ग्रामीण और शहरी महिलाओं की चुनौतियाँ
रिपोर्ट में ग्रामीण और शहरी महिलाओं के सामने अलग-अलग चुनौतियों का उल्लेख किया गया है। ग्रामीण महिलाओं को सीमित रोजगार अवसरों और अस्थिर कार्य वातावरण का सामना करना पड़ता है, जबकि शहरी महिलाएं रोजगार-कौशल असमानता और वेतन असमानता जैसी चुनौतियों से जूझ रही हैं।
महिला श्रम भागीदारी बढ़ाने की पहल
रिपोर्ट में सरकार, निजी क्षेत्र, गैर-लाभकारी संस्थाओं और निवेशकों को मिलकर महिला श्रम भागीदारी बढ़ाने के लिए सामूहिक प्रयास करने की सिफारिश की गई है। इसमें लिंग-संवेदनशील नीतियों, वित्तीय साक्षरता कार्यक्रमों और महिला उद्यमियों के लिए बेहतर बाजार पहुंच जैसे उपायों की आवश्यकता बताई गई है। बैन एंड कंपनी के पार्टनर नवनीत चहल ने ग्रामीण महिलाओं को पर्यावरण-संवेदनशील उद्यमिता और शहरी महिलाओं को कौशल प्रशिक्षण और बाल देखभाल समाधान के माध्यम से समर्थन देने की रणनीतियों पर जोर दिया।
महिला घरेलू श्रम की उपेक्षा
भारत में अधिकांश महिलाएं किसी न किसी रूप में अर्थव्यवस्था में योगदान करती हैं, लेकिन उनके घरेलू कार्य को कभी श्रम के रूप में मान्यता नहीं दी गई। 2011-12 के आंकड़ों के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्र की 35.3% और शहरी क्षेत्र की 46.1% महिलाएं घरेलू कार्यों में संलग्न थीं। लेकिन, इसके बावजूद, घरेलू श्रम को मान्यता नहीं मिल पाई है, जो महिला श्रम भागीदारी के निम्न स्तर का एक प्रमुख कारण है। ऐसे में सवाल उठता है कि जब महिलाएं दिन-रात मेहनत कर रही हैं, तो उनके श्रम का कोई आंकड़ा क्यों नहीं है?
महिलाओं पर हिंसा और रूढ़िवादी मान्यताएँ
महिलाओं के प्रति बढ़ती हिंसा ने उनके और उनके परिवारों को आतंकित कर दिया है। कार्यरत महिलाओं को अक्सर सुरक्षा के नाम पर रात के समय काम न करने की सलाह दी जाती है। ऐसी स्थिति में महिलाओं का कार्यबल में शामिल होना कठिन बना रहता है। वहीं, पितृसत्ता के सिद्धांत के अनुसार, “हमारे घर की महिलाएं काम नहीं करतीं”, जो महिलाओं की श्रम भागीदारी को और भी हतोत्साहित करता है। यह किस तरह की सोच है जो आज के आधुनिक युग में भी महिलाओं को उनके अधिकारों से दूर रख रही है?
शिक्षा और रोजगार में अवसरों की कमी
भारत में लड़कियों की शिक्षा में अच्छी प्रगति हुई है, लेकिन कार्यबल में उनका अनुपात अब भी निराशाजनक है। समाजशास्त्र की प्रोफेसर सोनल देसाई के अनुसार, “एक 10वीं पास पुरुष सेल्समैन, ट्रक ड्राइवर या मैकेनिक बन सकता है, लेकिन क्या ये अवसर महिलाओं के लिए खुले हैं? नहीं।”
निष्कर्ष
महिलाओं को कार्यबल में शामिल करने और उनकी भागीदारी दर बढ़ाने की सख्त आवश्यकता है, विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में, ताकि महिलाओं का विकास और देश की आर्थिक प्रगति संभव हो सके।