प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में धोखाधड़ी के शिकार लोगों को संपत्ति वापस करने के उद्देश्य से अपने प्रयास तेज कर दिए हैं। मनी लॉन्ड्रिंग निरोधक अधिनियम (पीएमएलए) के तहत आरोपित लोगों से जब्त संपत्तियों की बहाली पर एजेंसी ध्यान केंद्रित कर रही है। इसके साथ ही, ईडी अपनी जांच प्रक्रिया को भी तेजी से पूरा करने का प्रयास कर रही है। सूत्रों के अनुसार, हाल ही में ईडी के शीर्ष अधिकारियों की बैठक में इस मुद्दे पर गहन चर्चा की गई और यह निर्णय लिया गया कि पीड़ितों को उनकी संपत्तियाँ लौटाने की प्रक्रिया को प्राथमिकता दी जाए।
ईडी अब तक विशेष अदालतों के आदेशों के आधार पर लगभग ₹16,400 करोड़ की संपत्तियों को बहाल कर चुकी है। इनमें मुख्य रूप से तीन हाई-प्रोफाइल मामलों में की गई संपत्ति बहाली शामिल है। भगोड़े आर्थिक अपराधी और पूर्व शराब व्यवसायी विजय माल्या के मामले में ईडी ने एसबीआई के नेतृत्व में बैंकों के समूह को लगभग ₹14,131 करोड़ की संपत्ति बहाल की है। इसी प्रकार, हीरा व्यापारी और भगोड़े आर्थिक अपराधी नीरव मोदी के मामले में, पंजाब नेशनल बैंक के नेतृत्व में बैंकों के समूह को लगभग ₹1,052 करोड़ लौटाए गए हैं।
तीसरा मामला नेशनल स्पॉट एक्सचेंज लिमिटेड से जुड़ा है, जिसमें ईडी ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त समिति को लगभग ₹1,220 करोड़ की संपत्तियां बहाल की हैं। ये संपत्तियां 8,433 सार्वजनिक निवेशकों (जो धोखाधड़ी के शिकार हुए थे) को लौटाने के लिए दी गई हैं। खास बात यह है कि माल्या और नीरव मोदी के मामलों में, अदालत द्वारा आरोप तय होने से पहले ही ईडी ने संपत्ति बहाली का काम पूरा कर लिया था।
विशेष अदालतों ने पीएमएलए की धारा 8(7) के तहत संपत्ति बहाली का आदेश दिया था, यह ध्यान में रखते हुए कि माल्या और मोदी दोनों को भगोड़ा आर्थिक अपराधी घोषित किया गया था, और चूंकि दावा करने वाले सार्वजनिक बैंक हैं, इसलिए संपत्ति की बहाली को सार्वजनिक हित में माना गया। काले धन पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) की एक बैठक में पिछले महीने भुवनेश्वर में इस मुद्दे पर चर्चा की गई। इसमें यह भी चर्चा हुई कि किस प्रकार से विदेशों में जमा काले धन की संपत्तियों की भी इसी प्रक्रिया से बहाली की जा सकती है।
एसआईटी ने उन तरीकों पर विचार किया जिससे धोखाधड़ी से लूटे गए काले धन को देश वापस लाया जा सके। एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “मुद्दा सिर्फ अपराधियों को सज़ा देने का नहीं है, बल्कि पीड़ितों को यह विश्वास दिलाने का भी है कि उनके मेहनत की कमाई जो धोखाधड़ी से छीनी गई थी, उन्हें वापस की जाएगी।”
पिछले महीने, ईडी ने कोलकाता में रोज़ वैली ग्रुप के धोखाधड़ी से प्रभावित निवेशकों को ₹19.40 करोड़ की राशि वापस की थी। यह राशि रोज़ वैली संपत्ति निपटान समिति (एडीसी) के खाते में स्थानांतरित की गई, विशेष अदालत (पीएमएलए), कोलकाता के आदेशों के अनुसार। ईडी ने एडीसी के अध्यक्ष को लिखे एक पत्र में उम्मीद जताई कि इस राशि के शीघ्र वितरण से पीड़ितों को काफी राहत मिलेगी और न्याय के हित में यह एक बड़ा कदम होगा।
रोज़ वैली पर सार्वजनिक निवेशकों से झूठे वादों के तहत बड़े पैमाने पर धन एकत्र करने का आरोप है। ईडी द्वारा जल्द ही इस मामले में और संपत्तियों की बहाली की उम्मीद की जा रही है।
ईडी अब एसआरएस ग्रुप से जुड़े धोखाधड़ी मामले में भी संपत्ति बहाली कर रही है। यह निवेशकों के साथ धोखाधड़ी का मामला है, जिसमें दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा और सीबीआई ने एसआरएस ग्रुप, उसके चेयरमैन और प्रबंध निदेशक समेत अन्य लोगों के खिलाफ 81 एफआईआर दर्ज की हैं। आरोप है कि इन व्यक्तियों और संस्थाओं ने निवेशकों को धोखाधड़ी वाली निवेश योजनाओं में फंसाया और उन्हें ऊँचे ब्याज या अच्छे रिटर्न का झांसा दिया।
14 अगस्त को, अपीलीय न्यायाधिकरण (पीएमएलए) ने गुरुग्राम के पर्ल सिटी और प्राइम प्रोजेक्ट्स के होमबायर्स को 78 फ्लैटों की बहाली की अनुमति दी, जिनकी कुल कीमत ₹20 करोड़ से अधिक है। सैकड़ों होमबायर्स ने न्यायाधिकरण के समक्ष अपने दावे पेश किए थे, जिनकी ईडी द्वारा जांच की गई। जब 78 होमबायर्स की वैधता साबित हुई, तो ईडी ने इन संपत्तियों को उनके वास्तविक मालिकों को लौटाने का अनुरोध किया। अन्य दावेदारों की वैधता की जांच की जा रही है।
2018 तक, पीएमएलए की धारा 8(8) के तहत कोई भी संपत्ति बहाली नहीं की जा सकती थी, क्योंकि यह प्रावधान केवल अभियुक्तों के दोषी ठहराए जाने और अपराध से अर्जित संपत्तियों के जब्त होने के बाद ही लागू होता था, जो एक समय लेने वाली प्रक्रिया है। इस समस्या के समाधान के लिए, 2018 के वित्त अधिनियम के तहत एक दूसरा उपबंध जोड़ा गया, जिसमें विशेष अदालत को ट्रायल के दौरान ही संपत्ति बहाली के दावे पर विचार करने की अनुमति दी गई।
यह देखना हास्यास्पद है कि आखिरकार देश के बड़े घोटालेबाजों के मामले में ही क्यों संपत्ति जल्दी बहाल हो जाती है, जबकी अन्य धोखाधड़ी पीड़ितों के मामले वर्षों तक लटके रहते हैं? क्या यह संकेत नहीं है कि यदि सही नज़र और ताकत हो, तो प्रक्रिया तेज हो सकती है? क्या आम जनता की तकलीफें तब ही दूर होंगी जब वे हाई प्रोफाइल होंगे?