इस वर्ष की पहली तिमाही में भारतीयों ने केवल डिजिटल अरेस्ट धोखाधड़ी में ही ₹120.3 करोड़ का नुकसान उठाया है। यह जानकारी गृह मंत्रालय के डेटा का हवाला देते हुए एक रिपोर्ट से सामने आई है।
डिजिटल अरेस्ट धोखाधड़ी में लिप्त कई धोखेबाज म्यांमार, लाओस और कंबोडिया में स्थित हैं। रविवार, 27 अक्टूबर 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी 115वीं ‘मन की बात’ में इस गंभीर मुद्दे पर चर्चा की।
रिपोर्ट के अनुसार, इस अवधि में दर्ज कुल डिजिटल धोखाधड़ी के मामलों का 46% हिस्सा म्यांमार, लाओस और कंबोडिया से जुड़े धोखेबाजों का था। इसमें डिजिटल अरेस्ट, ट्रेडिंग स्कैम, निवेश (टास्क आधारित) और रोमांस/डेटिंग धोखाधड़ी शामिल हैं। पीड़ितों को इस दौरान कुल ₹1,776 करोड़ का नुकसान हुआ, जिसमें से ₹1,420.48 करोड़ ट्रेडिंग स्कैम में, ₹222.58 करोड़ निवेश स्कैम में, और ₹13.23 करोड़ रोमांस/डेटिंग स्कैम में गंवाए गए।
1 जनवरी से 30 अप्रैल 2024 के बीच साइबर क्राइम हेल्पलाइन पर 7.4 लाख शिकायतें दर्ज की गईं, जबकि 2023 में यह संख्या 15.56 लाख, 2022 में 9.66 लाख और 2021 में 4.52 लाख थी।
इस रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय साइबर क्राइम कोऑर्डिनेशन सेंटर (I4C) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी राजेश कुमार का कहना है कि इन देशों से संचालित साइबर क्राइम ऑपरेशन्स में धोखाधड़ी के कई तरीके अपनाए जाते हैं। इनमें भारतीयों को नकली रोजगार के अवसरों का झांसा देकर सोशल मीडिया के माध्यम से फंसाना भी शामिल है।
डिजिटल अरेस्ट क्या है? डिजिटल अरेस्ट का शिकार हुए व्यक्तियों को फोन पर यह बताया जाता है कि उन्होंने या तो किसी अवैध वस्तु, ड्रग्स, नकली पासपोर्ट या अन्य सामान भेजा है या भेजने वाले हैं। कुछ मामलों में, धोखेबाज पीड़ित के परिवार और मित्रों को कॉल कर बताते हैं कि पीड़ित किसी अपराध में संलिप्त है। फिर वीडियो कॉल के जरिए वर्दीधारी व्यक्ति बनकर स्वयं को पुलिस अधिकारी बताते हैं और केस बंद करने के लिए पैसे की मांग करते हैं।