ज़ोहो के सीईओ श्रीधर वेम्बू ने बेंगलुरु में रहने वाले लोगों से कन्नड़ भाषा सीखने और अपने बच्चों को भी यह स्थानीय भाषा सिखाने की अपील की है। उनके इस बयान पर सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं।
श्रीधर वेम्बू ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा, “मैं इस विचार से सहमत हूं। यदि आप बेंगलुरु को अपना घर बनाते हैं, तो आपको कन्नड़ सीखनी चाहिए और आपके बच्चों को भी यह भाषा आनी चाहिए। बेंगलुरु में कई सालों तक रहने के बाद भी ऐसा न करना अनादरपूर्ण है।”
वेम्बू ने आगे कहा, “मैं अक्सर चेन्नई में काम करने वाले उन कर्मचारियों से निवेदन करता हूं, जो दूसरे राज्यों से आते हैं, कि वे तमिल सीखने का प्रयास करें।”
उनकी यह टिप्पणी X पर एक पोस्ट के जवाब में आई, जिसमें एक उपयोगकर्ता ने स्थानीय भाषा न सीखने वाले लोगों पर सवाल उठाया था। उस पोस्ट में दो पुरुषों की तस्वीर थी, जिनकी टी-शर्ट पर “हिंदी नेशनल लैंग्वेज” लिखा था और कैप्शन दिया गया था, “बैंगलोर ट्रिप के लिए परफेक्ट टी-शर्ट।”
उस पोस्ट में लिखा था, “लोग विदेश जाने पर अंग्रेज़ी से फ्रेंच, अंग्रेज़ी से स्पैनिश और अंग्रेज़ी से इटैलियन डिक्शनरी खरीदने में एक मिनट नहीं सोचते, लेकिन अगर आप उन्हें भारत में स्थानीय भाषा सीखने को कह दें, तो जैसे तूफ़ान आ जाता है। कुछ लोग सालों तक ‘कन्नड़ गॉथिला’ (मुझे कन्नड़ नहीं आती) कहते रहते हैं, जैसे यह कोई सम्मान की बात हो।”
पोस्ट में आगे लिखा था, “स्पष्ट कर दूं, मेरी मातृभाषा कन्नड़ नहीं है, लेकिन पिछले दशक में यहां रहते हुए मैंने इसे सीखा। मेरी कन्नड़ परफेक्ट नहीं है और मुझे अभी भी वाक्य बनाने में दिक्कत होती है, लेकिन लोग इस बात की सराहना करते हैं कि आप कम से कम प्रयास तो कर रहे हैं।”
हालांकि, वेम्बू के इस बयान पर सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं का बड़ा वर्ग असहमति जता रहा है और कर्नाटक में रहने के लिए कन्नड़ सीखने की आवश्यकता पर सवाल उठा रहा है।
एक उपयोगकर्ता ने लिखा, “मुंबई में मेरे कई कन्नड़ दोस्त हैं, जो दशकों से यहां रह रहे हैं। उनमें से कोई भी मराठी नहीं बोलता। क्या यह सही है?”
एक अन्य उपयोगकर्ता ने कटाक्ष करते हुए कहा, “शानदार विचार, सर। आइए देश को बांटे और सीमा पर स्थानीय भाषा के IELTS जैसे प्रमाणपत्र अनिवार्य करें। लेकिन उससे पहले हमारे देश का टैगलाइन ‘विविधता में एकता’ गंगा में विसर्जित कर दीजिए।”
एक और उपयोगकर्ता ने तीखा सवाल किया, “आपकी यह बात बचकानी लगती है। किसी भाषा या संस्कृति का अनादर अस्वीकार्य है, लेकिन किसी भाषा को न सीखना अनादर है? तर्क तो यहीं मर गया।”
एक अन्य टिप्पणी में लिखा गया, “भाषा केवल संवाद का माध्यम है। लोग वही करते हैं, जो उनके जीवन-यापन के लिए जरूरी है। क्या यह सामान्य समझ की बात नहीं है? बेंगलुरु में, मैं अधिकतर गैर-कन्नड़ भाषी लोगों से मिलता हूं। उनमें से 90% अंग्रेज़ी का ही इस्तेमाल करते हैं।”