भारत की नवीकरणीय ऊर्जा पहल को सशक्त बनाने में सोलर एनर्जी कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (SECI) महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह निजी ऊर्जा उत्पादकों और राज्य बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम्स) के बीच मध्यस्थ के रूप में कार्य करता है। हालांकि, अमेरिकी अभियोग में भारतीय उद्योगपति गौतम अडानी का नाम आने के बाद SECI की निविदा प्रक्रिया पर सवाल उठने लगे हैं।
अभियोग और अडानी विवाद
अमेरिकी अभियोग के अनुसार, अडानी समूह के अधिकारियों ने SECI से 2019 की निविदा में जीते गए सोलर प्रोजेक्ट्स से संबंधित डिस्कॉम्स के साथ समझौते करने के लिए रिश्वत दी। यह आरोप है कि SECI द्वारा निर्धारित बिजली की दरें “बाजार दर से अधिक” थीं, जिसके कारण कथित रिश्वतखोरी का मामला सामने आया। अडानी समूह ने इन आरोपों से इनकार किया है।
SECI के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक आर. पी. गुप्ता ने कहा, “हम इस मामले पर कोई जांच शुरू नहीं कर रहे हैं क्योंकि इसका कोई आधार नहीं है। हमारे पास कोई दस्तावेज़ नहीं है, सिवाय अमेरिकी आदेश के। मैंने यह केवल मीडिया में सुना है और मुझे यह भी नहीं पता कि कोई नियम उल्लंघन हुआ है या नहीं।”
SECI की कार्य प्रणाली
SECI की स्थापना 2011 में जवाहरलाल नेहरू नेशनल सोलर मिशन (JNNSM) को लागू करने और इसके लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए की गई थी। यह संस्था नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के अधीन है और प्रतिस्पर्धात्मक निविदाएं निकालती है, ताकि कम कीमत पर बिजली खरीद कर डिस्कॉम्स को आपूर्ति की जा सके। उम्मीद होती है कि SECI सस्ती दरों पर बिजली डिस्कॉम्स तक पहुंचाएगा।
बाजार की चुनौतियां और असंतुलन
हालांकि SECI का मॉडल पहले सफल रहा, लेकिन समय के साथ डिस्कॉम्स ने बिजली खरीदना बंद कर दिया, या तो वित्तीय समस्याओं के कारण या कोयला आधारित सस्ती बिजली की उपलब्धता के चलते। इससे SECI के पास बिना खरीदारों के बिजली रह जाती है।
इसके अलावा, पुरानी परियोजनाओं से उत्पादित बिजली बिक नहीं पाती, क्योंकि नई निविदाओं में कम कीमतों पर बिजली मिलती है। दूसरी समस्या निविदा प्रक्रिया में है, जहां दो-चरणीय बोली प्रणाली में अंतिम चरण में रिवर्स ऑक्शन होता है। इसमें कंपनियां कम कीमत पर बोलियां लगाती हैं, लेकिन बाद में इतनी कम कीमत पर बिजली आपूर्ति करना व्यावहारिक नहीं रह जाता।
स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए SECI वित्तीय प्रोत्साहन देता है, लेकिन इससे निविदा की कीमतें बढ़ जाती हैं, जो कई बार डिस्कॉम्स को स्वीकार्य नहीं होतीं।
SECI को कैसे सुधारना चाहिए
SECI को पहले खरीदारों की मांग का आकलन कर उनकी प्रतिबद्धता सुनिश्चित करनी चाहिए और फिर आपूर्ति के लिए निविदा जारी करनी चाहिए। निविदाओं में यह शर्त होनी चाहिए कि अगर निर्धारित समय तक खरीदार नहीं मिलता, तो बोली समाप्त हो जाएगी।
स्थानीय उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए दिए जाने वाले प्रोत्साहनों का भी सावधानीपूर्वक संतुलन बनाना चाहिए, ताकि लागत बहुत अधिक न हो।
निष्कर्ष
SECI ने भारत में नवीकरणीय ऊर्जा की लागत कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, लेकिन इसकी कार्यप्रणाली में मांग और आपूर्ति का असंतुलन, कड़े अनुबंध और डिस्कॉम्स की वित्तीय समस्याएं दरारें पैदा कर रही हैं। इन समस्याओं का समाधान SECI की निविदा प्रक्रिया में सुधार और ऊर्जा आपूर्ति श्रृंखला में जवाबदेही सुनिश्चित करके किया जा सकता है।